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________________ हिंसा के कारण .. *##### #########*************************************** होता है और मरना अत्यन्त दुःखदायक तथा असहनीय है। ये जीव अत्यन्त दीन हैं। ये बिचारे अपने प्राणों को हिंसक मनुष्यों से बचाना चाहते हैं, किन्तु इनके पास रक्षा के अमोघ उपाय नहीं है। इन्हें प्राणों के विनाश का भय लगा ही रहता है। ऐसे दीन एवं रक्षा की भिक्षा चाहने वाले असहाय जीवों की भी क्रूर कर्म करने वाले दुष्ट पापरत क्रूर मनुष्य हिंसा करते हैं। हिंसा के कारण इमेहिं विविहेहिं कारणेहिं, किंते? चम्म-वसा-मंस-मेय-सोणिय-जग-फिप्फिसमत्थुलुंग-हिययंत-पित्त-फोफस-दंतहा अद्विमिंज-णह-णयण-कण्ण-ण्हारुणि-णक्कधमणि-सिंग-दाढि-पिच्छ-विस-विसाण-वालहेडं। हिंसंति य भमर-महुकरिगणे रसेसु गिद्धा तहेव तेइंदिए सरीरोवमरणट्ठयाएं किवणे बेइंदिए बहवे वत्थोहर-परिमंडणट्ठा। - शब्दार्थ - इमेहिं - पापीजन इन, विविहेहिं - विविध, कारणेहिं - कारणों से हिंसा करते हैं, किं ते - वे कारण कौन से हैं ?, चम्म - चमड़ा, वसा - चर्बी, मंस - मांस, मेय - मेद, सोणिय - रक्त, जग- यकृत, फिप्फिस - फेफड़ा, मत्थुलुंग- मस्तुलिंग-भेजा, हिय - हृदय, यंत- आँत, पित्तपित्ताशय, फोफस - शरीर का एक अवयव, दंतहा - दाँत के लिए, अट्ठि- हड्डी, मिंज - मजा, णह - नख, णयण - आँख, कण्ण - कान, ण्हारुणि - स्नायु, णक्क - नाक, धमणि - धमनी, सिंग - सींग, दाढि - दाढ़ी, पिच्छ - पूंछ, विस - विष, विषाण - हाथी-दाँत, विषाण शब्द से सूअर के दांत का भी ग्रहण हुआ है, बालहेउं - बालों के लिए, रसंसु गिद्धा - रसलोलुप जीव, मधु के लिए, भमरमहुकरिगणे - भ्रमर और मधुरक्खियों के समूह का, तहेव - वैसे ही, सरीरोवगरणट्ठाए - शारीरिक सुख के लिए. तेइंदिए - यूका खटमल आदि तेइन्द्रिय जीवों को, य - और, वत्थोहर परिमंडणट्ठा - वस्त्र तथा घर की शोभा बढ़ाने के लिए, बहवे - बहुत-से, किवणे - दीन, बेइंदिए - बेइन्द्रिय . जीवों की, हिंसंति - हिंसा करते हैं। भावार्थ - पापीजन किन कारणों से जीवों की हिंसा करते हैं ? इसके उत्तर में बतलाया है कि - चमड़ा, चर्बी, मांस, मेद, रक्त, यकृत, फेफड़ा, भेजा, हृदय, आंत, पित्ताशय, फोफस, दाँत, हड्डी, मज्जा, नख, आँख, कान, स्नायु, नाक, धमनी, सींग, दाढ़ी, पूँछ, विष, हाथी या सूअर के दाँत के लिए और बालों के लिए जीवों की हिंसा करते हैं। रसलोलुप जीव मधु (शहद) के लिए भ्रमरों और मधुमक्खियों के समूह (छत्ते) का और शरीर सम्बन्धी सुख के लिए तथा वस्त्र और घर को सजाने के लिए बेइन्द्रिय, तेइन्द्रिय जीवों की हिंसा करते हैं। _ विवेचन - प्रयोजन से प्रवृत्ति होती है। हिंसा की प्रवृत्ति किस प्रयोजन से होती है ? शिष्य के इस प्रश्न के उत्तर में आगमकार वे कारण बतलाते हैं। . चमड़े के लिए-चमड़े से ढोल, नगाड़े, तबले, डफली आदि वादिन्त्र बनते हैं, जूते बनते हैं, Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004201
Book TitlePrashna Vyakarana Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanlal Doshi
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2008
Total Pages354
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_prashnavyakaran
File Size8 MB
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