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________________ १० प्रश्नव्याकरण सूत्र श्रु० १ अ० १ ******** *** ********************************* शकुन, कुंच - क्रौंच पक्षी, दगतुंडा - दगतुंडक-जलकुकड़ी, ढेलियाणग - जलचर पक्षी, सुईमुह - शूचीमूख-सुघरी, कविल-कपिल, पिंगलक्खग- पिंगलाक्ष, कारंडग - कारंडक-बतख, चक्कवागचक्रवाक, उक्कोस - पक्षी विशेष, गरुल - गरुड़, पिंगुल - रक्त वर्ण वाला तोता, सुय - तोता, बरहिण - मयूर, मयणसाल - मदनशालिका-मैना, णंदीमुह - नन्दीमुख, णंदमाणग - नन्दसानक, जिसका शरीर दो अंगुल परिमाण है और भूमि पर फुदकता रहता है, कोरंग - कोलूक, भिंगारग - भुंगारक-भिंगोड़ी (छोटा पक्षी), कोणालग - कुणालक, जीवजीवग - जीवजीवक-चातक, तित्तिर - तीतर, वट्टग - बत्तख, लावग - पक्षी विशेष, कपिंजलग - इस नाम का पक्षी, कवोतग - कबूतर, : पारेवग - पारावत-एक प्रकार का कबूतर, चडग - चिड़िया, टिंक - एक पक्षी, कुक्कुड़ - मुर्गा, वेसरइस नाम का पक्षी, मयुरग - मोर, चउरग - चकोर, हयपोंडरीय - हृदपुंडरीक-जल-पक्षी, करग - करक, चीरल्ल - चील, सेण - बाज, वायस - कौआ, विहग - पक्षी विशेष, सिणचास - श्वेतचास, वग्गुलि - वल्गुली, चम्मट्ठिल - चमगादड़, विययपक्खी- वितत पक्षी, समुग्गपक्खीसमुद्र पक्षी, एवमाई - इत्यादि, खहयर विहाणाकए - खेचर पक्षियों के भेद हैं। ये सब खेचर-आकाश में उड़ने वाले पक्षियों के भेद हैं। हिंसक लोग इन जीवों की हिंसा करते हैं। विकलेन्द्रिय और पशुओं की पीड़ा .... . जल-थल-खग-चारिणो उ पंचिंदियपसुगणे बिय-तिय-चउरिदिए विविहे जीवे .पियजीविए मरणदुक्ख पडिकूले वराए हणंति बहुसंकिलिट्ठकम्मा। शब्दार्थ - जल-थल-खग-चारिणो - जल, स्थल और आकाश में विचरने वाले, पंचिंदिए - पंचिन्द्रिय प्राणी और, पशुगणे - पशुओं का समूह तथा, बिय-तिय-घउरिदिए - बेइन्द्रिय, तेइन्द्रिय और चौरिन्द्रिय जीव जो, विविहे - विविध प्रकार के हैं, पियजीविए - जिनको अपना जीवन प्रिय है, मरणदुक्खपडिकूले - जिनको मृत्यु का दुःख प्रतिकूल-अप्रिय है, वराए - उन दीन प्राणियों को, बहुसंकिलिट्ठकम्मा - अत्यंत क्लेशोत्पादक एवं दुष्ट कर्म करने वाले पापी जीव, हणंति - हिंसा करते हैं। भावार्थ - विविध प्रकार के जलचर, स्थलचर और खेचर ऐसे पंचेन्द्रिय जीवों और बेइन्द्रिय, तेइन्द्रिय, चउरेन्द्रिय, जीवों को अपना जीवन अत्यंत प्रिय है और मृत्यु का दुःख अत्यंत अप्रिय एवं प्रतिकूल है। ऐसे दीन जीवों की दुष्ट प्रकृति के दुराचारी क्रूर लोग हिंसा करते हैं। . विवेचन - पंचेन्द्रिय तिर्यंच जीवों के पांच भेद हैं - १. जलचर २. स्थलचर ३. खेचर ४. उरपरिसर्प और ५. भुजपरिसर्प। इन पांचों प्रकार के जीवों के कुछ भेद बतलाने के बाद उपरोक्त मूलपाठ में संक्षेप में तीन ही भेदों में पांच भेदों का समावेश किया गया है। उरपरिसर्प और भुजपरिसर्प इन दो भेदों का समावेश स्थलचर में किया गया है। इसका कारण यह है कि ये जीव भी स्थलचारीभूमि पर ही चलने वाले हैं। इन सभी जीवों और विकलेन्द्रिय जीवों को अपना जीवन अत्यन्त प्रिय Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004201
Book TitlePrashna Vyakarana Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanlal Doshi
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2008
Total Pages354
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_prashnavyakaran
File Size8 MB
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