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________________ सत्य की महिमा . 237 **************************************************************** 2. सम्मत सत्य - प्राचीन आचार्यों , विद्वानों अथवा लोक-समूह ने जिस शब्द का जो अर्थ मान लिया, वह 'सम्मत सत्य है ' है। जैसे - 'पंकज' शब्द का योगिक अर्थ तो है - कीचड़ में उत्पन्न होने वाला और कीचड़ में उत्पन्न होते हैं-मेढ़क, शैवाल, कुमुद, कुवलय, तापरस और कमल आदि। किन्तु विद्वानों ने पंकज शब्द का अर्थ केवल-'कमल' मान लिया है। अतएव यह सम्मत सत्य है। 3. स्थापना सत्य - किसी वस्तु में किसी दूसरी वस्तु का आरोपण करना। सदृश या असदृश आकार वाली वस्तु में किसी अन्य वस्तु की स्थापना करके उसे उस स्थापित नाम से पुकारनास्थापना सत्य है। जैसे - शतरंज के मोहरों को हाथी, घोड़ा, बादशाह, वजीर आदि कहना, 1 के ऊपर दो बिन्दी 00 लगाकर सौ 100 कहना, क ख आदि अक्षरों की आकृति भी ध्वनि की स्थापना रूप है। पत्र या पुस्तक में ध्वनि की आकृति 'क ख' आदि रूप में होती है, यह स्थापना सत्य है तथा किसी के नाम से स्थापित अनघड़ स्थापना और मूर्ति-चित्र आदि भी स्थापना सत्य है। 4. नाम सत्य - गुण रहित अथवा गुणहीन वस्तु का गुणयुक्त नाम रखना। जैसे-'कुलवर्द्धन' नाम उस व्यक्ति का दिया गया कि जिसके जन्म के बाद कुल का ही क्षय हो गया। वह अपुत्र ही मरा और वंश-परम्परा नष्ट हो गई। लक्ष्मीचन्द नाम दरिद्र का, अमरचन्द नाम बाल-अवस्था में ही मृत्यु पाने वाले का तथा सौभाग्यवती बाल विधवा का होना, गुणयुक्त नहीं होते हुए भी 'नामतः सत्य' है। 5. रूप सत्य - रूप की मुख्यता से किसी को सम्बोधन करना रूप सत्य है। जैसे - साधु का वेश धारण करने वाले किसी असाधु को भी 'सोधु' कहना, स्त्री वेशधारी पुरुष को 'स्त्री' कहना, नाटक के पात्र को वेश के कारण 'राजा' या 'इन्द्र' कहना।। 6. प्रतीत सत्य - किसी वस्तु की अपेक्षा दूसरी वस्तु को छोटी या बड़ी आदि कहना। जैसेमध्यमा अंगुली की अपेक्षा अनामिका को छोटी और अनामिका की अपेक्षा मध्यमा को बड़ी कहना। इस प्रकार की अपेक्षावाची वाणी प्रतीत सत्य है। 7. व्यवहार सत्य - व्यावहारिक बात। जैसे - जलता तो है पर्वत पर रहा हुआ घास या.. लकड़ियाँ, किन्तु कहा जाता है - 'पर्वत जलता है।' चूता है पानी, परन्तु कहा जाता है - 'मटका चूता है', स्थिर पथ के लिए कहना कि - 'यह मार्ग अमुक नगर जाता है।' यह सब व्यावहारिक वचन है, इसे 'व्यवहार सत्य' कहते हैं। . ८..भाव सत्य - भाव की विशेषता से वचन व्यवहार करना। जैसे तोते में गौण रूप में अन्य रंग होने पर भी उसे हरे रंग का कहना, आम में कुछ न कुछ खट्टापन होता हैं, किन्तु मधुरता की मुख्यता से उसे मीठा कहना। . 9. योग सत्य - किसी वस्तु का संयोग देख कर उसकी मुख्यता से पुकारना। जैसे - हाथ में दण्ड देख कर 'दण्डी' छत्रयुक्त को छत्री', घुड़सवार को घोड़े वाला, गाड़ीवान् आदि। 10. उपमा सत्य - किसी अमुक गुण की समानता से किसी दूसरी वस्तु से उसकी तुलना करना, Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004201
Book TitlePrashna Vyakarana Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanlal Doshi
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2008
Total Pages354
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_prashnavyakaran
File Size8 MB
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