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________________ 234 प्रश्नव्याकरण सूत्र श्रु० 2 अ०२ wwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwww******************####### लहंति। सच्चेण य अगणिसंभमम्मि वि ण डझंति उज्जुगा मणुस्सा। सच्चेण य तत्ततेल्लतउलोहसीसगाई छिवंति धरेंति ण य डझंति मणुस्सा। पव्वयकडकाहिं. मुच्चंते ण य मरंति सच्चेण य परिग्गहिया, असिपंजरगया समराओ वि णिइंति अणहा य सच्चवाई, वहबंधभियोगवेर-घोरेहिं पमुच्चंति य अमित्तमज्झाहिं णिइंति अणहा य सच्चवाई, सादेव्वाणि य देवयाओ करेंति सच्चवयणे रत्ताणं। शब्दार्थ - पच्चक्खं - प्रत्यक्ष, दयिवयं व - देव के समान, अच्छेरकारगं - आश्चर्यकारक, अवत्थंतरेसु बहुसु - बहुत-सी विपत्तियों के आने पर भी, मणुस्साणं - मनुष्यों के लिए, सच्चेणं - सत्य के प्रभाव से, महासमुहमाझे - महान् समुद्र के मध्य में, मूढाणिया - दिशा-भ्रमित नाविक की, पोया- नौका, सच्चेण - सत्य के प्रभाव से, उदगसंभमम्मि वि - जलावर्त में पड़ी हुई, ण वुज्झइडूबती नहीं, ण मरंति- मरते नहीं, थाहं- थाह को. ते- वे. लहंति - प्राप्त करते हैं. सच्चेण- सत्य के प्रभाव से, अगणिसंभम्मि - अग्नि के उपद्रव में भी, ण डझंति - नहीं जलते, उज्जुगा - सरल, मणुस्सा - मनुष्य, सच्चेण - सत्य के प्रभाव से, तत्ततेल्लतउलोहसीसगाई - तप्त तेल, रांगा, लोहा. और शीशा को, छिवंति - स्पर्श करते, धरेंति - धारण करते, ण डझंति - जलते नहीं, मणुस्सा - मनुष्य, पव्वयकडकाहिं - पर्वत के अग्रभाग से, मुच्चंते - गिरा दिये जाने पर भी, ण मरंति - मरते नहीं, सच्चेण - सत्य के प्रभाव से, परिग्गहिया - चारों ओर से घेर लिया जाने पर भी, असिपंजरगया - तलवारों से युक्त शत्रुओं के समूह द्वारा, समराओ - संग्राम में, णिइंति - निकल आते हैं, अणहा - अक्षत शरीर, सच्चवाई - सत्यवादी मनुष्य, वहबंधभियोगवेरघोरेहिं - वध, बन्धन, बलात्कार और घोर उपद्रवों से भी, पमुच्चंति - मुक्त होते हैं, अमित्तमझाहिं - शत्रुओं के बीच से, णिइंति - निकल आते हैं; अणहा - अक्षत, सच्चवाई - सत्यवादी मनुष्य, सादेव्वाणि - समीपता, देवयाओ - देव भी, करेंति - करते हैं, सच्चवयणे रत्ताणं - सत्य-वचन में अनुरक्त रहने वाले मनुष्यों की। भावार्थ - सत्यभाषी मनुष्य पर यदि विपत्तियाँ आकर घेरा डाल दें, तो भी उसका सत्यव्रत उसके लिए देव के समान आश्चर्यकारी प्रत्यक्ष सहायक होता है। दिग्मूढ़ नाविक की महासमुद्र के जल-भ्रमर में पड़ी हुई नौका भी सत्य के बल से डूबती नहीं और नौका-विहारी मरते नहीं। वे अथाह जल से निकल कर थाह प्राप्त कर लेते हैं। सत्य के प्रभाव से अग्नि का उपद्रव-दावानल भी नहीं जला सकता। सत्य का आचरण करने वाले सरल मनुष्य यदि उबलते हुए तेल रांगा, लोह और शीशे को हाथों में पकड़ लें, तो भी नहीं जलते। सत्य पालक को यदि कोई पर्वत-शिखर से गिरा दे, तो भी वह नहीं मरता और बच जाता है। सत्यव्रती मनुष्य संग्राम में शत्रु-समूह द्वारा घिरकर भी सुरक्षित निकल जाता है। सत्यभाषी मनुष्य, वध, बन्धन, आक्रमण, बलप्रयोग एवं घोर शत्रुदल की विपत्ति से भी मुक्त हो जाता है। सत्यवाद में अनुरक्त रहने वाले मनुष्य का देव भी सान्निध्य करते हुए सेवा करते हैं। यह सत्य-व्रत की महिमा है। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004201
Book TitlePrashna Vyakarana Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanlal Doshi
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2008
Total Pages354
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_prashnavyakaran
File Size8 MB
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