________________ 216 प्रश्नव्याकरण सूत्र श्रु० 2 अ० 1 ******** *********************************** स्थानउत्कुटुक, वीरासनिक, नैषधिक, दण्डायतिक, लगण्डशायिक, एकपार्श्विक आतापक, अप्रावृतिक, अनिष्ठिवक, अकण्डूयक, धुर्त-केश-श्मश्रु-लोम-नख असंस्कारक, समस्त गात्र प्रतिकर्म विमुक्त और श्रुतधर, विदित अर्थ-काय बुद्धि-सम्पन्न, इन, सभी संयमी महात्माओं ने अहिंसा का आचरण किया है। - स्थिरमति एवं विशुद्ध बुद्धि वाले, आशीविष सर्प के समान तीव्र प्रभाव वाले वस्तुतत्त्व का निर्णय करने वाली बुद्धि तथा पौरुष से परिपूर्ण, नित्य स्वाध्याय-ध्यान में रत, धर्मध्यान में तल्लीन रहने वाले, पाँच महाव्रतों के धारक, समितियों से सम्पन्न, पाप-विनाशक, छह प्रकार के जगत् के वत्सल और नित्यअप्रमत्त रहने वाले। ऐसे उत्तम पुरुषों और अन्य महात्माओं ने भगवती अहिंसा का पालन किया है। विवेचन - उत्क्षिप्तचरक-पकाने के पात्र में से बाहर निकाले हुए भोजन में से आहार लेने के अभिग्रह वाले। निक्षिप्तचरक - पकाने के पात्र में निकले हुए भोजन को वापिस पात्र में डाला जाता हुआ लेने की प्रतिज्ञा वाले। * अन्तचरक - नीरस-छाछमिश्रित या वाल-चनादि निम्न कोटि का आहार लेने की प्रतिज्ञा वाले। प्रान्तचरक - खाने के बाद बचे हुए आहार में से लेने के अभिग्रह वाले या निःसार ऐसे छिलके आदि का आहार लेने वाले। रूक्षचरक- रूखा-सूखा आहार लेने की प्रतिज्ञा वाले। - समुदानचरक- समभाव से ऊंच-नीच मध्यम कुल से आहार लेने वाले। अन्नग्लायक - प्राप्त अप्राप्त भिक्षा में भी दीनता नहीं लाने वाले अथवा प्रात:काल में ही बासी आहार की गवेषणा करने वाले। .. मोनचरक - मौनपूर्वक आहार के लिए जाने वाले। संसृष्टकल्पिक - दाता का जो हाथ या पात्र, पहले से ही आहार से (परोसने या किसी को देने के कारण) लिप्त है, उसी से लेने का अभिग्रह रखने वाले।। तज्जात संसृष्टकल्पिक - जो आहार लेना है, उसी से दाता का हाथ या पात्र लिप्त हो, तो लेने के अभिग्रह वाले। उपनिहितक - निकटवर्ती स्थान से आहार लेने के संकल्प वाले अथवा दाता के निकट रहे हुए आहार में से दे, तो लेने के नियम वाले। शबैषणिक - दोषरहित शुद्ध आहार की गवेषणा करने वाले। संख्यादत्तिक - दत्तिओं की संख्या निर्धारण करके भिक्षा के लिए जाने वाले। दृष्टलाभिक - दिखाई देते हुए स्थान से लाए हुए आहार को ग्रहण करने वाले। अदृष्टलाभिक - पहले कभी नहीं देखे हुए मनुष्य से आहार लेने के नियम वाले। आचाम्ल तपस्वी - बिना घृत, तेल, दुग्धादि चिकनाई और लवणादि मसाले के केवल रूखे और स्वादरहित अन्न का आहार करने वाले। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org