________________ - अहिंसा के विशुद्ध दृष्टा 215 * * ******************** ********** पिण्ड की गवेषणा करने वाले, परिमियपिंडवाइएहिं - परिमित पिंड लेने वाले, अंताहारेहि-पंताहारेहिंअन्त-प्रान्त आहार लेने वाले, अरसाहारेहि-विरसाहारेहिं - अरस-विरस आहार लेने वाले, लूहाहारेहितुच्छाहारेहिं - रूक्ष और तुच्छ आहार लेने वाले, अंतजीविहिं - अन्तजीवी, पंतजीविहिं - प्रान्तजीवी, लूहजीविहिं - रूक्षजीवी, तुच्छजीविहिं - तुच्छ जीवी, उवसंतजीविहिं - उपशान्तजीवी, पसंतजीविहिप्रशान्त जीवी, विवित्तजीविहिं - विविक्तजीवी, अंखीरमहुसप्पिएहिं - खीर, मधु और घृत का सेवन नहीं करने वाले, अमज्जमसासिएहिं - मद्य-मांस के त्यागी, ठाणाइएहिं - उठने-बैठने के स्थान को अभिग्रहपूर्वक ग्रहण करने वाले, पडिमंठाइएहिं - एक मासिकी, द्विमासिकी आदि प्रतिमा अंगीकार . करने वाले, ठाणुक्कडिएहिं - एक स्थान पर उत्कटुक आसन से बैठने वाले, वीरासणिएहिं - वीरासन से बैठने वाले, सजिएहिं - दृढ़ आसन जमाकर बैठने वाले, डंडाइएहिं - डंडे की तरह एक आसन पर स्थित रहने वाले, लगंडसाईहिं - अपनी एड़ी और सिर मात्र से ही पृथ्वी का स्पर्श कर स्थित रहने वाले, एगपासगेहिं - एक ही करवट से शयन करने वाले, आयावएहिं - आतापना लेने वाले, अप्पावएहि - शरीर को कपड़े से बिना ढके ही कायोत्सर्ग करने वाले, अणिट्ठभएहिं - न थूकने वाले, अकंडुयएहिं - शरीर को नहीं खुजलाने वाले, धुयकेसमंसुलोमणहेहिं - अपनी दाढ़ी-मूंछ तथा बाल और नखों का संस्कार नहीं करने वाले, सव्वगायपडिकम्मविप्पमुक्केहिं - अपने शरीर के समस्त अंगों का संस्कार नहीं करने वाले, सुयहरविइयत्थकाय-बुद्धीहिं - सूत्रों को धारण करने वाले तथा अर्थराशि के ज्ञाता, समणुचिण्णा - इस अहिंसा का आचरण किया है, धीरमइबुद्धिणो - स्थिर मति वाले तथा औत्पातिकी आदि बुद्धि वाले, आसीविसउग्गतेयकप्पा - आशीविष सर्प के समान तीव्र प्रभाव वाले, णिच्छयववसायपज्जत्तकयमईया - जो वस्तु तत्त्व का निर्णय करने वाली बुद्धि तथा पौरुष से परिपूर्ण है, णिच्चं - सदा, सज्झायझाणअणुबद्धधम्मज्झाणां - स्वाध्याय एवं ध्यान में रत रहते हैं और धर्म-ध्यान में तल्लीन रहते हैं, पंचमहव्ययचरित्तजुत्ता - जो पाँच महाव्रतों के धारक हैं, समिइसु समियाईर्या-समिति आदि समितियों से सम्पन्न, समियपावा - जिन्होंने पापों का क्षय कर दिया है, छविहजगवच्छला- छह प्रकार के जगत् के वत्सल हैं, णिच्चं - सदा, अप्पमत्ता - अप्रमत्त हैं, एएहिंऐसे उत्तम पुरुषों द्वारा, अण्णेहिं - दूसरे महापुरुषों द्वारा, जा - जो, सा - इसका, अणुपालिया - पालन किया गया है, भगवई - इस अहिंसा भगवती का। भावार्थ - चौथ-भक्त यावत् छहमासिक तप वाले, उक्षिप्तचरक, निक्षिप्तचरक, अन्तचरक, प्रान्तचरक, रूक्षचरक, समुदानचरक, अन्नग्लायक, मौनचरक, संसृष्टकल्पिक, तज्जातसंसृष्टकल्पिक, . उपनिहितक, शुद्धैषणिक, संख्यादत्तिक, दृष्टलाभिक, अदृष्टलाभिक, आचाम्ल तपस्वी, पूर्वार्द्धक, एकासनिक, निर्विकृतिक, भिन्नपिण्डपातिक परिमितपिण्डपातिक, अन्तप्रान्त आहारक, अरसाहारक, विरसाहारक, रूक्षाहारक, तुच्छाहारक, अन्तजीविक, प्रान्तजीविक, रूक्षजीविक, तुच्छजीविक, उपशान्त जीवी, प्रशान्त जीवी, विविक्त जीवी, अक्षीरमधुसर्पिक, अमद्यमांसिक, स्थानातिक, प्रतिमास्थायिक, Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org