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________________ 212 प्रश्नव्याकरण सूत्र श्रु०२ अ०१ * *************************************************** अपरिमित ज्ञान-दर्शन के धारक, सीलगुणविणयतवसंयमणायगेहिं - उत्कृष्ट शील, गुण, विनय, तप और संयम को धारण करने वाले, तित्थयरेहिं - तीर्थंकरों द्वारा, सव्वजगजीववच्छलेहिं- संसार के समस्त प्राणियों के वत्सल, तिलोयमहिएहिं - तीन लोक के पूज्य, जिणवरेहिं - जिनेश्वरों द्वारा, सुहृदिट्ठाभली-भांति देखी गई, ओहिजिणेहिं - अवधिज्ञान वाले महात्मा पुरुषों ने, विण्णाया - भली-भाँति देखा, उज्जुमइहिं - ऋजुमति मनःपर्यवज्ञान वालों ने, विदिट्ठा - भली-भाँति देखा, विउलमइहिं -विपुलमति वाले महात्माओं ने, विविदिया - रहस्य को समझा, पुव्वधरेहिं - पूर्वधारी महात्माओं ने, अहिया - इसका अध्ययन किया, वेउव्वीहिं - वैक्रिय लब्धि वाले महात्माओं ने, पतिण्णा - आजन्म इसका पालन किया है, आभिणिबोहियणाणीहिं- आभिनिबोधिक ज्ञानी, सुयणाणाहि- श्रुतज्ञानी, मणपज्जवणाणीहिंमन:पर्यवज्ञानी, केवलणाणीहिं - केवल ज्ञानी महापुरुषों ने, आमोसहिपत्तेहिं - आम!षधि लब्धि वाले, खेलोसहिपत्तेहिं - खेलौषधि लब्धि वाले, जल्लोसहिपत्तेहिं - जल्ल-मैल औषधि रूप लब्धि वाले, विप्योसहिपत्तेहिं - विपुषौषधि लब्धि वाले, सव्वोसहिपत्तेहिं - आमर्ष आदि सभी लब्धियाँ जिनको प्राप्त हैं ऐसे सर्वोषधि लब्धि वाले, बीयबुद्धीहिं - जिनकी बुद्धि बीज के समान है, कुतुबुद्धीहिं - जिनकी बुद्धि कोठे के समान है, पयाणुसारीहिं - पदानुसारी, सभिण्णसोएहिं - सम्भिन्न श्रोत लब्धि वाले, सुयधरेहिं - श्रुतधर, मणबलिएहिं - दृढ़ मनोबल वाले, वयबलिएहिं - वचन-बल वाले, कायबलिएहिं - काय बल वाले, णाणबलिएहिं - दृढ़ ज्ञान-बल वाले, दंसणबलिएहिं - दर्शन-बल वाले, चरितबलिएहिं - चारित्र-बल वाले, खीरासवेहिं - क्षीर अर्थात् दूध के समान मधुर वचन बोलने वाले, महुआसवेहिं - मधु अर्थात् शहद के समान मधुर वचन वाले, सप्पियासवेहि - घृत के समान स्निग्ध वचन वाले, अक्खीणमहाणसिएहिं - अक्षीण महानसिक लब्धिधारी महात्मा, चारणेहिं - आकाश में गमन करने वाले चारण मुनि, विज्जाहरेहिं - विद्याचारणलब्धि वाले। भावार्थ - यह अहिंसा भगवती, अपरिमित (असीम) ज्ञान-दर्शन के धारक, उत्तम शील, गुण, विनय, तप और संयम के नायक-अधिपति, समस्त जीवों के वत्सल एवं तीनों लोक के पूज्य जिनेश्वर भगवंतों, जिनचन्द्र (गगन में चन्द्रमा के समान) तीर्थंकरों द्वारा देखी गई (एवं सेक्न की गई) है। अवधिज्ञानी महात्माओं ने इसे भली भाँति जानी है, ऋजुमति मन:पर्यव ज्ञानियों और विपुलमति मनः पर्यवज्ञानियों ने इसके रहस्य को समझा है। पूर्वधरों ने इसका अध्ययन किया है। वैक्रिय-लब्धि वाले महात्माओं ने इसका पालन किया है। आभिनिबोधिकज्ञानी, श्रुतज्ञानी, मनःपर्ययज्ञानी और केवलज्ञानी महापुरुषों ने इसका आचरण किया है। आमाँषधि लब्धिधारी, खेलौषधि लब्धि वाले, जल्लौषधि लब्धि सम्पन्न, 'विप्रौषधि लब्धि वाले, सर्वोषधि लब्धिधारी, बीजबुद्धि वाले, कोष्ठबुद्धि सम्पत्र, पदानुसारी बुद्धि युक्त, सम्भिन्न-श्रोत लब्धि वाले और श्रुतधर, मनोबली, वचनबली, कायबल वाले, ज्ञानबली, दर्शनबली, चारित्रबल से पूर्ण, क्षीरास्रवी, मधुरास्रवी, सर्पिरास्रवी अक्षिणमहानसिक लब्धि वाले और जंघाचारण, विद्याचारण महात्माओं ने अहिंसा का पालन किया है। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004201
Book TitlePrashna Vyakarana Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanlal Doshi
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2008
Total Pages354
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_prashnavyakaran
File Size8 MB
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