________________ 199 ********************************************** विविध कलाएँ भी परिग्रह के लिए ******** लक्षण 29. पुरुष लक्षण 30. अश्व लक्षण 31. गज लक्षण 32. गो लक्षण 33. कुर्कुट लक्षण 34. मेढ (भेड़) लक्षण 35. चक्र लक्षण 36. छत्र लक्षण 37. दण्ड लक्षण 38. असि (खड्ग) लक्षणं 39. मणि लक्षण 40. काकिणी लक्षण 41. चर्म लक्षण 42. चन्द्र लक्षण (ग्रहणादि फल) 43. सूर्य लक्षण 44. राहु चरित 45. ग्रह चरित्र 46. सौभाग्य वृद्धिकर 47. दौर्भाग्य 48. विद्यागत 49. मन्त्रगत 50. रहस्य 51. स्वभाव ज्ञान 52. चार (ज्योतिष विद्या) 53. प्रतिचार (प्रतिकूल ग्रहों की चाल विषयक) 54. व्यूह (युद्ध रचना) 55. प्रतिव्यूह 56. स्कन्धावार (सेना का पड़ाव लगाना) 57. नगरमान (नगर निर्माण) 58. वास्तुमान (गृह विज्ञान) 59. सैन्य निवेश परिज्ञान 60. वास्तु निवेश (गृह निर्माण) 61. नगर निवेश 62. इषुशास्त्र (नागपाशादि दिव्य-शस्त्रों का ज्ञान) 63. त्सरुकला (खड्ग चलाना)/६४. अश्वशिक्षा 65. हस्तिशिक्षा 66. धनुर्वेद 67. पाक (धातु आदि पचाना) 68. युद्ध-कला 69/ खेल (क्रीड़ा) 70. छेद्य (निशाना साधना) 71. सजीव निर्जीव करण और 72. शकुन शास्त्र। स्त्रियों की 64 कलाएँ - 1 से.१५ नृत्य, चित्र वादिन्त्र, मन्त्र, वर्षा, शकुन गज अश्वपरीक्षा, स्त्री-पुरुष लक्षण, वैद्यक, अंजनयोग, वाणिज्य, कार्य, सर्वभाषा ज्ञान और वीणादि वादन। 16. औचित्य ज्ञान (उचितानुचित का विचार) 17. ज्ञान 18. विज्ञान 19. दम्भ 20. जलस्तंभ 21. गायन 22. तालमेल 23. आराम रोपण (बगीचा लगाना) 24. आकार गोपन (पति को सहायक बनने में विविध प्रकार के भावों को धारण करना) 25. धर्म विचार 26. नीति विचार 27. प्रसादकला (मधुर भाषणादि) 28. संस्कृत जल्पन 29. सुवर्ण वृद्धि 30. सुगन्धीकरण 31. लीला संचारण (क्रीड़ा) 32. काम-क्रिया 33. लिपि-छेद 34. तात्कालिक सावधानी 35. वस्तु शुद्ध 36. स्वर्ण-रत्न शुद्धि 37. चूर्ण योग 38. हस्त-लाघव 39. वचन पटुता 40. भोज्य विधि 41. व्याकरण 42. शालिखण्डन 43. मुख-मण्डलन 44. कथा कथन 45. कुसुम-गुंथन (पुष्प के आभूषणादि बनाना) 46. श्रृंगार कला 47. अभिधान (वस्त्र परिधान आदि की कला) 48. आभरण विधि 49. भृत्योपचार (सेवक-सेविका के साथ व्यवहार करने की शिक्षा) 50. गृह्याचार (घर. सम्बन्धी नीति) 51. संचयकरण (वस्तु का संग्रह कर रखने की कला) 52. भोजन बनाना 53. केश बन्धन 54. वितण्डावाद 55. अंक विचार 56. लोक-व्यवहार 57. प्रश्न-प्रहेलिका 58. अन्त्याक्षरी 59. क्रियाकल्प (कार्य करने या वस्तु बनाने-सुधारने की कला) 60. वर्णिका-वृद्धि (वस्तु को आकर्षक बनाने की कला) 61. घटभ्रमण (?) 62. सार परिश्रम (व्यर्थ परिश्रम नहीं करके सारभूत परिश्रम करना) 63. पर-निराकरण (विपक्षी या विरोधी को हटाने की कला) और 64. फल-बुद्धि। पुरुषों और स्त्रियों की शिक्षा के उपरोक्त विषय देख कर, उस समय की शिक्षा की उच्चता सार्वदेशीयता एवं उपयोगिता का आभास मिल सकेगा। इससे वर्तमान समय की शिक्षा की क्षुद्रता का भी पता चल सकेगा। पुरुषों की 72 कलाओं का उल्लेख समवायांग के मूल पाठ से लिया है। अन्य ग्रन्थों में पाठ-भेद भी है। स्त्रियों की कलाओं का उल्लेख मूलसूत्र में देखने में नहीं आया। ये सभी Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org