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________________ 198 प्रश्नव्याकरण सूत्र श्रु० 1 अ०५ **************************************************************** चलाना, वशीकरण करना और सैकड़ों प्रकार से अर्थोपार्जन के उपायों में प्रवृत्ति की जाती है। कई मन्दबुद्धि लोग नृत्य-कला के द्वारा जीवन-पर्यन्त नाच कर धन का संग्रह करते हैं। धन के लिए प्राणियों का वध करना, झूठ बोलना, ठगाई करना, वस्तु में मिलावट करके बेचना, दूसरे के धन को लेने के लिए ललचाना, इत्यादि प्रकार के दुष्कार्य करते हैं। वे इच्छा एवं महा-तृष्णा रूपी प्यास से सतत प्यासे ही रहते हैं। अपनी स्त्री का सेवन करके आयास (शारीरिक खेद) प्राप्त करते हैं और पर-स्त्री को प्राप्त करने के लिए चिन्तित रहते हैं। धनासक्त प्राणी क्लेश. भण्डण-निन्दा. वैर और अपमान तथा तिरस्कार प्राप्त करते हैं। तृष्णा, गृद्धता तथा लोभ में ग्रस्त जीव, असहाय एवं अत्राण रहते हैं। अपने मन और इन्द्रियों को वश में नहीं रखने वाले मनुष्य निन्दनीय होते हैं। धन के लिए क्रोध, मान, माया और लोभ करते हैं। परिग्रह के कारण नियम से शल्य, दुष्कृत्य, ऋद्धि आदि गर्व, कषाय, संज्ञा,, शब्दादि कामगुण, आश्रव, इन्द्रिय-लम्पटता तथा अशुभ लेश्या प्राप्त होती है। परिग्रह के लिए मनुष्य स्वजनादि का सहयोग चाहते हैं और सचित्त, अचित्त और मिश्र ऐसे अनन्त द्रव्यों को संचय करने की इच्छा रखते हैं। देव, मनुष्य और असुरलोक में सर्वत्र लोभ रूपी परिग्रह संचय किया जाता है। जिनेश्वर भगवंत ने कहा है कि परिग्रह के समान दूसरा कोई बन्धन नहीं है। समस्त लोक में सभी जीवों के लिए यह परिग्रह महाबन्धन है। विवेचन - धन प्राप्त करने के साधन रूप सैकड़ों प्रकार के शिल्प और बहत्तर प्रकार की पुरुष सम्बन्धी तथा चौसठ प्रकार की स्त्री सम्बन्धी कलाएँ हैं। शिल्प - हाथ की कारीगरी से वस्तु का निर्माण करना। घर, कुआँ, तालाब, भवन, वस्त्र, बरतन आदि बनाने का कार्य। पुरुष की बहत्तर कलाएँ - समवायांग सूत्र में पुरुष की बहत्तर कलाएँ इस प्रकार बतलाई हैं 1. लेखनकला 2. गणितकला 3. रूपकला (चित्र मूर्ति आदि बनाने की विद्या) 4. नाट्य अभिनय 5. गीत (गायनकला) 6. वादनकला 7. स्वरगत (स्वर ज्ञान) 8. पुष्करगत (मृदंगादि वादन) 9. समताल (गीत का ताल मिलाना) 10. द्युत (जूआ) खेलना 11. जनवाद (द्युत विशेष) 12. पौरपत्य (नगर रक्षण-कला) 13. अष्टापद (द्युत विशेष) 14. दकमृतिका (मिट्टी में जल मिलाकर वस्तु निर्माण करना) 15. अन्नविधि (भोजन बनाने की कला) 16. पानविधि (पानी के गुण दोष जानने एवं शुद्ध करने की विद्या) 17. वस्त्रविधि (वस्त्र बुनने, बनाने, धोने और संस्कारित करने की कला) 18. शयनविधि (शयन के उपकरण तथा शयन करने विषयक विज्ञान) 19. आर्या (आर्यावृत्त आदि छन्द-काव्य निर्माण कला) 20. प्रहेलिका (गूढार्थ काव्य निर्माण कला) 21. मागधिका (मगध की भाषा) 22. गाथा (प्राकृत गाथा निर्माण) 23. श्लोक (संस्कृत श्लोक बनाना) 24. सुगन्धी युक्ति (इत्रादि सुगन्धित वस्तु बनाना) 25. मधुसिक्थ (मोम से वस्तुएं बनाना ) 26. आभरण विधि (गहने बनाने और पहनने की कला) 27. प्ररुणी प्रतिकर्म (युवती को वश में करने आदि की कला) 28. स्त्री Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004201
Book TitlePrashna Vyakarana Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanlal Doshi
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2008
Total Pages354
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_prashnavyakaran
File Size8 MB
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