________________ विविध कलाएँ भी परिग्रह के लिए 197 *************************************************************** चउसट्ठि- चौसठ प्रकार के, महिलागुणे - स्त्री सम्बन्धी नृत्य-गीत आदि गुणों की शिक्षा, रइजणणे - रति को उत्पन्न करने वाले, सिप्पसेवं - राजादि की शिल्प के द्वारा सेवा करके, असिमसिकिसिवाणिज्जंअसि-शस्त्र चलाना, मसी-शास्त्र लिखना, कृषि-खेती करना और वाणिज्य-क्रय-विक्रय आदि करना, अत्थसत्थईसत्थच्छरुप्पवायं - राजनीतिशास्त्र, धनुर्वेद, छुरी आदि की मूठ पकड़ना, विविहाओअनेक प्रकार के, जोगजुंजणाओ - वशीकरण आदि योगों का विज्ञान, अण्णेसु - अन्य, एवमाइएसुइसी प्रकार के, बहुसु - बहुत-से, कारणसएसु - सैकड़ों प्रकार के कारणों, जावज्जीवं - जीवन पर्यन्त, णडिज्जए - नाचते रहते हैं, सचिणंति - संचय करते हैं, मंदबुद्धि - अल्प बुद्धि वाले, परिग्गहस्सेव अट्ठाए-परिग्रह के लिए ही, पाणाणं - प्राणियों का, वहकरणं- वध करना, अलियणियडिसाइसंपओगेझूठ बोलना, ठगना, अल्प-मूल्य वाले पदार्थ को बहुमूल्य वाले पदार्थ में मिला कर बेचना, परदव्वाभिज्जादूसरों के धन को लेने की इच्छा करमा, सुपरदारअभिगमणासेवणाए आयासविसूरणं- अपनी स्त्री को सेवन करके शारीरिक खेद प्राप्त करते हैं और पर-स्त्री को प्राप्त करने के लिए मानसिक चिंता से दुःखित होते हैं, कलहभंडणवेराणि - क्लेश शारीरिक कलह और वैर, अवमाणणविमाणणाओ - अपमान और तिरस्कार को प्राप्त होते हैं, इच्छामहिच्छप्पिवाससययतिसिया- इच्छा और महती इच्छा रूप प्यास से निरन्तर प्यासे रहने वाले प्राणी, तण्हगेहिलोहघत्था - तृष्णा, गृद्धि और लोभ में ग्रस्त, अत्ताणा- अशरण, अणिग्गहिया - मन और इन्द्रियों को वश में न करने वाले पुरुष, कोहमाणमायालोहेक्रोध, मान, माया और लोभ, अकित्तणिज्जे - निन्दनीय, परिग्गहचेव - परिग्रह के कारण ही, णियमानियम से, सल्ला - माया, निदान और मिथ्यात्व के तीन शल्य, दंडा - मन, वचन और काया की दुष्ट प्रवृत्ति, गारवा - ऋद्धि रस और साता गारव, कसाया - कषाय, सण्णा - संज्ञा, कामगुणअण्हगा - शब्दादि पाँच कामगुण तथा पाँच आश्रव द्वार, इंदियलेस्साओ - इन्द्रिय लम्पटता और अशुभ लेश्याएँ प्राप्त होती है; सयणसंपओगा - स्वजन वर्ग का संयोग चाहते हैं, सचित्ताचित्तमिसगाई - सचित्त, अचित्त और मिश्र, दव्वाइं - द्रव्यों को, अणंतगाई - अनन्त, इच्छंति - इच्छा करते हैं, परिघेत्तुं - संचय करने की, सदेवमणुयासुरस्मिलोए - देवलोक, मनुष्यलोक और असुरलोक में, लोहपरिग्गहो - लोभ के कारण ही परिग्रह, जिणवरेहिं - जिनवरों ने, भणिओ - कहा है, णत्थि - नहीं है, एरिसो - परिग्रह के समान दूसरा कोई, पासो - पाश-बन्धन, पडिबंधो - महाबन्धन, अस्थि - है, सव्वजीवाणं - सभी जीवों के लिए, सव्वलोए - समस्त लोक में। . भावार्थ - परिग्रह के लिए बहुत-से लोग, सैकड़ों प्रकार की शिल्पकलाएँ और अन्य बहत्तर प्रकार की कला सीखते हैं। निपुणतापूर्वक लेखन आदि से लगा कर पक्षियों की बोली के ज्ञानपर्यन्त तथा गणित-प्रधान कलाओं की शिक्षा ग्रहण करते हैं। धन के लिए रति-जनित महिलाओं का चौसठ प्रकार की कलाओं और नृत्य-गीतादि गुणों की शिक्षा प्राप्त की जाती है। धन के लिए राजसेवा का अभ्यास, शस्त्र-प्रयोग, लेखन कार्य, कृषि-कर्म, व्यापार, राजनीति, धनुर्वेद, खड्ग-छुरी आदि का Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org