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________________ कर्मभूमि के मनुष्यों का परिग्रह 195 **************************************************************** आदि नदियाँ, हृदपति रतिकर अञ्जनक, दधिमुख, अवपात, उत्पात, काञ्चन चित्रविचित्र और यमकवर, इन पर्वतों के शिखर पर निवास करने वाले देव और वक्षस्कार तथा अकर्मभूमि में निवास करने वाले आदि सभी देव परिग्रह पर आसक्त रहने वाले हैं। . . कर्मभूमि के मनुष्यों का परिग्रह सुविभत्तभागदेसासु कम्मभूमिसुजे वि य णरा चाउरंतचक्कवट्टी वासुदेवा बलदेवा मंडलीया इस्सरा तलवरा सेणावई इब्भा सेट्ठी रट्ठिया पुरोहिया कुमारा दंडणायगा माडंबिया सत्थवाहा कोडुंबिया अमच्चा एए अण्णे य एवमाई परिग्गहं संचिणंति अणंत असरणं दुरंतं अधुवमणिच्चं असासयं पावकम्मणेम्मं अवकिरियव्वं विणासमूलं वहबंधपरिकिलेसबहुलं अणंतसंकिलेसकारणं, ते तं धणकणगरयणणिचयं पिंडिया चेव लोहघत्था संसारं अइवयंति सव्वदुक्ख संणिलयणं। शब्दार्थ - सुविभत्तभागदेसासु - जिने भाग और देश विभक्त हैं, कम्मभूमिसु - कर्मभूमि में रहने वाले, जे - जो, णरा - मनुष्य, चाउरंतचक्कवट्टी - चारों दिशाओं में अपनी आज्ञा मनाने वाले चक्रवर्ती, वासुदेवा. - वासुदेव, बलदेवा - बलदेव, मंडलीया - माण्डलिक राजा, इस्सरा - ईश्वर युवराज, तलवरा - तलवर-जागीरदार, सेणावई - सेनापति, इब्भा - इभ्य सेठ, सेट्ठी - सेठ, रट्ठिया - राष्ट्र के हित की चिंता करने वाले, पुरोहिया - पुरोहित, कुमारा - राजकुमार, दंडणायगा - दण्डनायक, माडंबिया- माडंबिक, सत्यवाहा - सार्थवाह, कोडुंबिया - कौटुम्बिक, अमच्चा - मंत्री, एए - ये सब, अण्णे - दूसरे सभी लोग, य - और, एवमाइ - इसी प्रकार के, परिग्गहं - परिग्रह का, संचिणंति - संचय करते हैं, अणंत - अपरिमित, असरणं - शरणभूत नहीं होता, दुरंतं - जिसका अन्त बड़ी कठिनाई से होता है, अधुवं - अध्रुव है, अणिच्चं - अनित्य है, असासयं - अशाश्वत है, पावकम्मणेम्मं - पाप कर्म का मूल है, अवकिरियव्वं - त्यागने योग्य हैं, विणासमूलं - विनाश का मूल है, वहबंधपरिकिलेसबहुलं- जिसमें वध, बन्धन और क्लेश की अधिकता है, अणंतसंकिलेसकारणं - अनन्त क्लेशों का हेतु है, ते - वे लोग, तं - उस परिग्रह का, धणकणगरयणणिचयं - धन, कनक और रत्नों का समूह रूप, पिंडिया - संग्रह करने वाले, लोहघत्था - लोभग्रस्त होकर, संसार - संसार में, अइवयंति - परिभ्रमण करते रहते हैं, सव्वदुक्खसंणिलयणं - सभी दुखों के आश्रयभूत। भावार्थ - जिनके भाग और देश विभक्त हैं, ऐसी कर्मभूमि के मनुष्य और चारों दिशाओं पर अधिकार रखने वाले ऐसे चक्रवर्ती, नरेन्द्र, वासुदेव, बलदेव, माण्डलिक राजा, ईश्वर (युवराज) तलवर (भूमिपति-जागीरदार), सेनापति, इभ्य-सेठ, राष्ट्र नेता, पुरोहित, राजकुमार, दण्डनायक, माडंबिक, Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004201
Book TitlePrashna Vyakarana Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanlal Doshi
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2008
Total Pages354
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_prashnavyakaran
File Size8 MB
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