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________________ अकर्मभूमिज स्त्रियों का शारीरिक वैभव १७९ **************************************************************** अट्ठावयवीइपट्ठसंठियपसत्थविच्छिण्णपिहुलसोणी - उनका कटिभाग चौपड़-पट्ट - चौपड़ खेलने के लिए बने हुए रेखांकित पटिये-के समान विस्तीर्ण तथा प्रशस्त होता है वयणायामप्पमाणदुगुणियविसालमंसलसुबद्धजहणवरधारिणीओ - कटि का अग्रभाग-नितम्ब-मुख के प्रमाण से द्विगुण-चौबीस अंगुल विस्तृत, सुबद्ध, पुष्ट एवं विशाल होता है वज्जविराइयपसत्थलक्खणणिरोदरीओवज्र के समान कृश तथा प्रशस्त लक्षणों से युक्त उदरावली तिवलिवलियतणुणमियमज्झियाओ - उदर तीन रेखाओं से शोभित तथा नम्र-झुका हुआ है उज्जुयसमसहियजच्चतणुकसिणणिद्धआइज्जलडहसुकुमालमउयसुविभत्तरोमराइओ - उनके शरीर की रोमावली अत्यन्त सूक्ष्म, काली, सम, सघन, स्निग्ध, रम्य, ललित, सुकुमाल, कोमल, विभक्त एवं रमणीय होती है गंगावत्तगपदाहिणावत्ततरंगभंगरविकिरणतरुणबोहियआकोसायंतपउमगंभीरवियडणाभी - उनकी नाभि, गंगा नदी के जल में बनते हुए आवर्त के समान दक्षिणावर्त वाली तथा सूर्य की किरणों से विकसित कमल के समान और गंभीर होती है, अणुब्भडपसत्थसुजायपीणकुच्छी - उनकी कुक्षि उन्नत, प्रशस्त सुन्दर तथा पुष्ट होती है, सण्णयपासा ,- पार्श्व नीचे की ओर झुके हुए, सुजायपासा - सुजात-सुघढ़ पार्श्व, संगयपासा - मिले हुए पार्श्व, मियमाणियपीणरइयपासा - उनके पार्श्व प्रमाणयुक्त उन्नत एवं सुन्दर होते हैं, अकरंडुयकणगरुयगणिम्मलसुजायणिरुवहयगायलट्ठी - उनकी पीठ मांसल-जिससे हड्डियाँ दिखाई नहीं देती, नीरोग, निर्मल, सोने के समान कांति वाली होती है, कंचणकलस पमाणसमहियलट्ठचुचुयआमेलगजमलजुयलवट्टियपयोहराओ - उनके दोनों पयोधर-स्तन, स्वर्ण कलश के समान, प्रमाणयुक्त, सुन्दर, गोल, उन्नत, परस्पर मिले हुए दोनों समान, सुन्दर चुंचक-स्तन-बिटक युक्त होते हैं, भुयंगअणुपुवतणुयगोपुच्छवट्टसमसहियणमियआइज्जलडहबाहा - भुजाएँ सर्प के समान क्रमशः पतली, स्निग्ध, गोपुच्छ के समान गोल, प्रमाणोपेत नम्र तथा सुन्दर होती है, तंबणहा - ताम्रवर्ण के नख, मंसलग्गहत्था - हाथ का अग्रभाग मांसल, कोमलपीवरवरंगुलिया - अंगुलियाँ कोमल और पुष्ट होती है, णिद्धपाणिलेहा - उनके कोमल-मुलायम, हाथ शुभ रेखा से युक्त होते हैं, ससिसूरसंखचक्कवरसोत्थियविभत्तसुविरइयपाणिलेहा - हाथों में चन्द्र, सूर्य, शंख, चक्र, दक्षिणावर्त, शंख' आदि चिह्न सुन्दर रूप में रेखांकित है। भावार्थ - 'देवकुरु' और 'उत्तरकुरु' नाम की अकर्मभूमि के पुरुषों की प्रमदाएँ (स्त्रियाँ) भी बड़ी सौम्य एवं सुन्दर होती है। उनके शरीर और अंगोपांग सुन्दर होते हैं। वे महिलाओं के हाव-भाव, विलास आदि मुख्य गुणों से युक्त होती हैं। उनके पाँव प्रमाणयुक्त अत्यन्त सुन्दर सुकुमाल तथा कछुए के समान आकार से उन्नत होते हैं। पाँवों की अंगुलियाँ सीधी, पुष्ट, कोमल, परस्पर मिली हुई और मनोहर होती हैं। नख उन्नत, ताम्रवर्ण वाले, स्निग्ध तथा चमकीले होते हैं। उनकी दोनों जंघाएँ (पिण्डलियाँ ?) गोल, पुष्ट, रोमरहित, मांगलिक-चिह्नांकित और मनोहर होती है। घुटनों की संधियाँ । भली प्रकार से जुड़ी हुई, मांस से आच्छादित और स्नायुजाल से बद्ध एवं पुष्ट होने के कारण घुटनों की Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004201
Book TitlePrashna Vyakarana Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanlal Doshi
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2008
Total Pages354
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_prashnavyakaran
File Size8 MB
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