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________________ १७८ प्रश्नव्याकरणं सूत्र श्रु० १ अ० ४ **** कयलीखंभाईरेकसंठिय- णिव्वणसुकुमालमउयकोमलअविरलसमिसहियसुजायवट्टपीवरणिरंतरोरू अट्ठावयवीइपट्टसंठियपसत्थविच्छिण्णपिहुलसोणी वयणायामप्पमाण दुगुणियविसालमंसलसुबद्धजहणवरधारिणीओ वज्जविराइय-पसत्थलक्खणणिरोदओ तिवलिवलियतणुणमियमज्झियाओ उज्जुयसमसहियजच्चतणुक सिणणिद्धआइज्जलडहसुकुमालमउयसुविभत्त - रोमराईओ गंगा-वत्तगपदाहिणावत्ततरंगभंगरविकिरणतरुणबोहियआकोसायंत पउमगंभीरवियडणाभी अणुब्भडपसत्थसुजायपीणकुच्छी सण्णयपासा सुजायपासा संगयपासा मियमाणियपीणरइयपासा अकरंडुयकणगरुयग-णिम्मलसुजायणिरुवहयगायलट्ठी कंचणकलसपमाणसमसहियलट्ठ-चुंचुयआमेलग-जमलजुयलवट्टियपयोहराओ भुयंगअणुपुव्वतणुयगोपुच्छवट्ट समसहियणमिय- आइज्जलडहबाहा तंबणहा मंसलग्गहत्था कोमल-: पीवरवरंगुलिया णिद्धपाणिलेहा ससिसूरसंखचक्कवरसोत्थियविभक्तसुविरइयपाणिलेहा | शब्दार्थ- पमयावि प्रमदा- स्त्रियाँ भी, तेसिं उनकी, होंति होती है, सोम्मा सौम्य, सुजायसव्वंगसुंदरीओ- उनका शरीर और अंग सुघड़ तथा सुन्दर होता है, पहाणमहिलागुणेहिं जुत्तावे महिलाओं के खास-खास गुणों से युक्त होती हैं, अइक्तविसप्पमाण- मउयसुकुमालकुम्मसंठियसिलिट्ठचलणा उनके पाँव प्रमाण युक्त अत्यन्त सुन्दर, कोमल एवं सुकुमार और कछुए के समान आकृति वाले उन्नत होते हैं, उज्जुमउयपीवरसुसाहयंगुलीओ उनके पाँव की अंगुलियाँ सीधी, पुष्ट, कोमल, परस्पर मिली हुई और मनोहर होती है, अब्भुण्णयरइत्तलिणतंबसुइणिद्धणखा - उनके नख उन्नत मनोहर ताम्रवर्णी चिकने तथा चमकीले होते हैं, रोमरहियवट्टसंठियअजहण्णपसत्थलक्खणअकोप्पजंघजुयला उनकी दोनों जंघाएँ रोम रहित, गोल, अनेक प्रशस्त लक्षणों से युक्त तथा मनोहर होती हैं, सुणिम्मियसुणिगूढजाणूमंसलपसत्थसुद्धबसंधी - घुटने की सन्धियाँ भी प्रकार से जुड़ी हुई और स्नायुओं से बद्ध होती है तथा मांस से युक्त होने के कारण दिखाई नहीं देतीं, कयलीखंभाइरेकसंठियणिव्वणसुकुमालमउयकोमलअविरलसमिसहियसुजायवट्टपीवरणिरंतरोरू उनकी जंघाओं का ऊपर का भाग, कदली स्तंभ से भी अधिक सुन्दर गोल, व्रणादि के घाव चिह्न से रहित, सुकुमार अत्यन्त कोमल, परस्पर मिला हुआ, पुष्टं, प्रमाणयुक्त एवं शुभ लक्षणों से युक्त है, Jain Education International - - * पूज्य श्री हस्तीमलजी म. सा. अनुबादित प्रति में इस स्थान पर "पउमगंभीरवियडणाभी अणुब्भड -पसत्थसुजायपीणकुच्छी सण्णय" इतना पाठ छूट गया है। संस्कृत छाया और अन्वयार्थ में तो इनका उल्लेख है। इससे लगता है कि लिपिकार अथवा कम्पोज में यह पाठ छूट गया है- डोशी । - For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004201
Book TitlePrashna Vyakarana Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanlal Doshi
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2008
Total Pages354
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_prashnavyakaran
File Size8 MB
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