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________________ ****** अकर्मभूमिज स्त्रियों का शारीरिक वैभव १७७ *** *** *************************** ** सुगन्धित है और मुंह सुगन्धित युक्त होता है, अणुलोमवाउवेगा - शरीरस्थ वायु का वेग अनुकूल होता है, अवदायणिद्धकाला - वे गौर-वर्ण स्निग्ध तथा श्याम वर्ण वाले होते हैं, विग्गहियउण्णय कुच्छीउनकी कुक्षि, शरीर के अनुकूल व उन्नत होती है, अमयरसफलाहारा - वे अमृत रस के समान फलों का आहार करते हैं, तिगाउयसमूसिया - उनके शरीर की लम्बाई तीन गाउ-कोश-की होती है, तिपलिओवमट्ठिइया - वे तीन पल्योपम की स्थिति वाले होते हैं, तिणि य पलिओवमाइं परमाउं पालइत्ता - वे अपनी तीन पल्योपम की उत्कृष्ट आयु भोग कर, उवणमंति मरणधम्म - मृत्यु को प्राप्त होते हैं, अवितत्ता कामाणं - कामभोगों से अतृप्त रह कर ही। भावार्थ - वे स्वस्तिकादि उत्तम. लक्षणों और तिलमसादि शुभ व्यञ्जनों तथा गुणों से युक्त होते हैं। वे बत्तीस प्रकार के उत्तम लक्षणों के धारक होते हैं। उनका कण्ठ स्वर हंस के समान स्निग्ध, क्रोंच के समान सुरीला एवं मृदु, दुंदुभि के समान गम्भीर सिंह के समान प्रवर्द्धमान और मेघ के समान दिशाओं को व्याप्त करने वाला होता है। उनका स्वर सरल, सुखद एवं सुन्दर होता है। उनका शरीर वज्र-ऋषभ-नाराच संहनन वाला और समचतुरस्र संस्थान युक्त होता है। उनके अंगोपांग कान्ति से दमकते हुए और शोभायमान होते हैं। उनका शरीर रोग-रहित होता है। वे कंक पक्षी के समान थोड़े से आहार से ही संतुष्ट हो जाते हैं। उनकी जठराग्नि कपोत के समान आहार को शीघ्र पचाने वाली होती है। उनका मलद्वार पक्षी की गुदा के समान निर्लेप रहता है। उनकी पीठ और दोनों पार्श्व तथा पेट, उचित परिमाण युक्त एवं सुन्दर होता है। वे अमृत के समान श्रेष्ठ रस वाले फलों का आहार करते हैं। उनके शरीर की लम्बाई तीन कोश की और आयु तीन पल्योपम की होती है। वे अपनी सम्पूर्ण आयु भोग कर, कामभोग में अतृप्त रहते हुए ही मृत्यु को प्राप्त हो जाते हैं। - विवेचन - पसत्थ बत्तीस लक्खणधरा - प्रशस्त लक्षणों के धारक। वे शुभ लक्षण बत्तीस हैं। यथा १. छत्र २. कमल ·३. धनुष ४. श्रेष्ठ रथ ५. वज्र ६. कुर्म ७. अंकुश ८. वापी ९. स्वस्तिक १०. तोरण ११. तालाब १२: सिंह १३. वृक्ष १४. चक्र १५. शंख १६. गज १७. समुद्र १८. प्रासाद १९. मच्छ २०. यव २१. स्तंभ २२. स्तूप २३. कमंडलु २४. पर्वत २५. चामर २६. दर्पण २७. वृषभ २८. पताका २९. लक्ष्मी ३०. माला ३१. मयूर और ३२. पुष्प। .... अकर्मभूमिज स्त्रियों का शारीरिक वैभव पमया वि य तेसिं होति सोम्मा सुजायसव्वंगसुंदरीओ पहाणमहिलागुणेहिं जुत्ता अइकंतविसप्पमाणमउयसुकुमालकुम्मसंठियसिलिट्ठचलणा उज्जुमउयपीवरसुसाहयंगुलीओ अब्भुण्णयरइयत्तलिणतंबसुइणिद्धणखा रोमरहियवट्टसंठियअजहण्णपसत्थलक्खणअकोप्पजंघजुयला सुणिम्मियसुणिगूढजाणू-मंसलपसत्थसुबद्धसंधी Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004201
Book TitlePrashna Vyakarana Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanlal Doshi
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2008
Total Pages354
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_prashnavyakaran
File Size8 MB
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