________________
****************
अकर्मभूमिज मनुष्यों के भोग
************
और दर्शनीय है, सुजायसव्वंगसुंदरंगा उनके सभी अंगोंपांग सुन्दर और सुडौल हैं, रत्तुप्पलपत्तकंतकरचरणकोमलतला हाथ और पाँव के तलुए लाल कमल के समान वर्ण वाले तथा कोमल हैं, सुपइट्ठियकुम्मचारुचलणा उनके पाँव कछुए के समान सुप्रतिष्ठित एवं सुन्दर हैं, अणुपुव्वसुसंहयंगुलिया पाँवों की अंगुलियाँ क्रमशः बड़ी-छोटी एवं संगठित है, उण्णयतणुतंबणिद्धणखा उनके नख उन्नत, पतले, ताम्रवर्ण स्निग्ध एवं चमकीले है, संठियसुसिलिट्ठगूढगुंफा - पाँवों के टखने सुघटित तथा पुष्ट है, एणीकुरुविंदवतवट्टाणुपुव्विजंघा उनकी जंघाएँ हिरनी तथा कुरुविन्द वृक्ष के समान गोल तथा क्रमशः स्थूलता युक्त है, समुग्गणिसग्गगूढजाणू - डिब्बा और उसके ढक्कन की मिली हुई सन्धि (जोड़) के समान उनके घुटनों की सन्धि मिली हुई तथा पुष्ट एवं उभरी हुई होती है। वरवारणमत्ततुल्लविक्कमविलासियगई- मस्त हाथी के समान विक्रम एवं विलास युक्त गति वाले, वरतुरगसुजायगुज्झदेसा - उत्तम घोड़े के समान उनका गुह्यदेश ( पुरुषचिह्न) गुप्त रहता है, आइण्णहयव्वणिरुवलेवा - आकीर्ण जाति के अश्व के समान वे लेप रहित होते हैं- उनका गुदा स्थान निर्लेप रहता है, पमुइयवरतुरगसीहअइरेगवट्टियकडी प्रसन्न हुए उत्तम घोड़े और सिंह से भी बढ़ कर उनकी कमर गोल तथा पतली है, गंगावत्तदाहिणावत्ततरंगभंगुररविकिरणबोहियविको सायं तपम्हगंभीरवियडणाभी - गंगा के आवर्त के समान दक्षिण आवर्त्त वाली, सूर्य किरणों से विकसित कमल के समान तथा गम्भीर उनकी नाभि है, साहतसोणंदमुसलदप्पणणिगरियवरकणगच्छरुसरिसवरवरवलियमज्झा - उनका मध्य भाग संक्षिप्त तिपाई मूसल के मध्य भाग दर्पण का हत्था, शुद्ध स्वर्ण से बनी तलवार की मूठ तथा उत्तम वज्र के समान कृश ( पतला ) होता है, जुगसमसहियजच्तणुकसिणणि आइज्जलडहसुमालमउयरोमराई- उनकी रोमावली परस्पर मिली . हुई, स्वभाव से ही सुन्दर, सूक्ष्म, स्निग्ध, अति कोमल, काली एवं मनोहर है झसविहगसुजायपीणकुच्छीमछली एवं पक्षी के समान उनको कुक्षी-पेट के दोनों ओर का भाग पीन एवं उन्नत हैं, झसोयरापम्हविअडणाभी उनका पेट, मगरमच्छ के समान और नाभि पद्म के समान प्रकट होती है, सण्णयपासा पार्श्व - छाती और पेट का दाहिना और बायाँ भाग नीचे झुके हुए, संगयपासा - पार्श्व संगत-मिले हुए हैं, सुंदरपासा- उनके पार्श्व सुन्दर हैं, सुजायपासा उनके पार्श्व सुजात-अच्छे होते हैं, मियमाइयपीणरइयपासा उनके पार्श्व मीत- प्रमाण युक्त उन्नत एवं सुन्दर होते हैं, अकरंडुयकणगरुयगणिम्मलसुजायणिरुवहयदेहधारी उनकी पीठ पर मांस चढ़ा हुआ होने के कारण हड्डियाँ दिखाई नहीं देती और शरीर नीरोग, निर्मल तथा सोने के समान कान्तियुक्त होता है, कणगंसिलातलपसत्यसमतलउवइयविच्छिण्णपिहुलवच्छा - उनका वक्ष स्थल सोने की शिला के समान प्रशस्त समतल तथा मांसल और विस्तीर्ण होता है, जुयसण्णिभपीणरइयपीवरपउट्ठ - हाथ का पहुँचा गाड़ी के जुए के समान मोटा और रमणीय है, संठिय-सुसिलिट्ठ - विसिठ्ठलट्ठसुणिवियघणथिरसुवद्ध संधी उनकी हड्डियों का सन्धि स्थान उत्तम संस्थान युक्त, सुसंगठित मनोज्ञ, गाढ़
Jain Education International
-
-
-
-
-
१७१
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org