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________________ १६० प्रश्नव्याकरण सूत्र श्रु०१ अ०४ ****************************** *********************** है। श्रेष्ठ कलाकारों द्वारा उत्तम रीति से बनाई हुई मनोहर माला, कटक (कड़ा या पहुंची) कुण्डल, अंगद (भुजबन्ध) तुटिका (बाहु-रक्षिका) आदि श्रेष्ठ आभूषणों से उनका शरीर शोभायमान है। एकावली हार से उनका वक्षस्थल विभूषित है। जिनके शरीर पर उत्तरीय-वस्त्र झूलता हुआ लटक रहा है और अंगुलियाँ अंगुठियों की पीली आभा से दमक रही हैं। उज्ज्वल वेश से जो मनोहर दिखाई देते . हैं। वे अपने तेज से सूर्य के समान तेजस्वी लगते हैं। उनका कण्ठस्वर शरदकाल में उत्पन्न नवीन मेघ की गर्जना के समान मधुर एवं गम्भीर है। सभी प्रकार के रत्नों की प्राप्ति से वे समृद्ध हैं और सर्वोत्तम चक्ररत्न भी उनके आधीन है। वे नौ निधियों के अधिपति हैं। उनका धन-भण्डार भरपूर है। वे तीन ओर समुद्र और एक ओर हिमवंत पर्वत-पर्यन्त समस्त पृथ्वी के स्वामी हैं। हाथी, घोड़े, रथ और पदाति - यों चार प्रकार की सेना उनका अनुगमन करती है। अतएव वे अश्वाधिपति, गजपति, रथपति एवं नरपति हैं। उनके उत्तम कुल की कीर्ति संसार में व्याप्त हो रही है। उनका मुख शरदकाल के पूर्ण चन्द्रमा के समान सौम्य है। वे बड़े ही शूरवीर हैं। उनका प्रभाव तीनों लोक में फैला हुआ है। जो सारे भारत वर्ष के स्वामी हैं। मनुष्यों में इन्द्र के समान हैं। धैर्यवान् हैं। चूलहिमवंत पर्वत से लवण समुद्र पर्यन्त समस्त पर्वतों, वनों और उद्यानों से सम्पन्न सम्पूर्ण भारतवर्ष का भोग करते हैं। अपने सभी शत्रुओं को पराजित कर जिन्होंने विजयश्री प्राप्त कर ली है। जो समस्त राजाओं में श्रेष्ठ एवं सिंह के समान है। पूर्वभव में की हुई तपस्या के प्रभाव से जो प्रभावित हैं और अपने पूर्व-संचित महान् सुखों को भोगते हैं। जो सैकड़ों वर्षों की आयु वाले हैं। वे चक्रवर्ती महाराजाधिराज, उत्तम देशों और उत्तम कुलों में उत्पन्न रानियों के साथ विलास करते हुए अनुपम शब्द, रूप, रस, गन्ध और स्पर्श का अनुभव करते हैं। सैकड़ों वर्ष भोग भोगते हुए भी.वे काम-भोगों से अतृप्त रहते हुए मृत्यु को प्राप्त होते हैं। विवेचन - चक्रवर्ती सम्राट की ऋद्धि और भोग-समृद्धि का वर्णन करते हुए सूत्रकार ने ३२००० बड़े राजाओं का वर्णन किया है। जम्बूद्वीप प्रज्ञप्ति में विशेष में - ४९ कुराज्यों (खराब राज्यों) का भी उल्लेख है। सोलह हजार म्लेच्छराज्य भी होते हैं। चौसठ हजार रानियों के अतिरिक्त बत्तीस हजार 'ऋतुकल्याणिका', बत्तीस हजार 'जनपदकल्याणिका' भी होती है। दुगुल्ल - दुकुल-वल्कल-एक प्रकार के वृक्ष की छाल को पानी में भिगोकर मूसलादि से कूटकर बहुत कोमल बनाया जाता है। उसके बारीक तार निकाल कर वस्त्र बनाया जाता है। वह ठसर, सनिया जैसा बड़ा कोमल स्पर्श वाला और आकर्षक होता है। . चौदह रल - चक्रवर्ती महाराजाधिराज के १४ रत्न होते हैं। इनमें ७ एकेन्द्रिय रत्न होते हैं, यथा१. चक्ररत्न २. छत्र ३. चर्म ४. दण्ड ५. खड्ग ६. मणि और ७. काकिणी रत्न। पंचेन्द्रिय ७ रत्नों में से पांच मनुष्य होते हैं - १. सेनापति २. गाथापति (भंडारी) ३. वार्द्धिकी (बढ़ई) ४. पुरोहित और ५. स्त्री रत्न। For Personal & Private Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.004201
Book TitlePrashna Vyakarana Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanlal Doshi
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2008
Total Pages354
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_prashnavyakaran
File Size8 MB
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