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तेसिं - उनमें, वहसत्थगपाढयाणं- कई वधशास्त्र के ज्ञाता हैं उनसे, विलउलीकारगाणं - जो चोरों का पता लगाने में कुशल हैं, लंचसयगेण्हाणं - जो सैकड़ों प्रकार से घूस लेते हैं, कूडकवडमायाणियडिवे छल-कपट और वेश परिवर्तन आदि प्रपंच का, आयरणपाणिहि वंचण विसारयाणं- आचरण करने तथा जासूसी करके भुलावा देने में प्रवीण होते हैं, बहुविह अनेक प्रकार से, अलियसय - सैकड़ों प्रकार झूठ, पगाणं - बोलते हैं, परलोय - परलोक से, परम्मुहाणं- विमुख रहते हैं, णिरयगइगामियाणंनरक गति में जाने वाले, तेहिं उन, आणत्तजीयदंडा - प्राण-दण्ड आदि की आज्ञा देते हैं, तुरिये - त्वरित, उघाडिया - प्रकट रूप से, पुरवरे नगर में, सिंघाडग श्रृंगाटक- त्रिकोण बाजार, तिय- चउक्कचच्चर- चउम्मुह - त्रिक चतुष्क चत्वर चतुर्मुख महापहपहेसु - महापथ-राजमार्ग और सामान्य प
लकड़ी, कट्ठ - काष्ठं, लेट्ठ
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मिट्टी का ढेला, पत्थर - पत्थर,
एक प्रकार की लाठी, मुट्ठि
पर, वेत्त - बेंत, दंड - डण्डा, लउड पणालि - शरीर प्रमाण दण्ड, पणोल्लि मुक्का, लया लता, पायपहिलात, जाणु - घुटनों से, कोप्पर कूहनी से, पहार प्रहार-मार कर के, संभग्गमहियगत्ता - हड्डियाँ तोड़ देते हैं, गात्रों का मथन कर देते हैं।
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प्रश्नव्याकरण सूत्र श्रु० १ अ० ३
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श्रृंगाटक- सिंगोड़े के आकार का त्रिकोण मार्ग । त्रिक - जहाँ तीन मार्ग मिलते हों।
चतुष्क - जहाँ चार मार्ग मिलते हों ।
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भावार्थ - वे चोर उपरोक्त तथा आगे कही जाने वाली वेदना भुगतते हैं जिनकी इन्द्रियाँ (और मन) वश में नहीं है, जो विषय के आधीन बन गए हैं, जो महामोहनीय से मोहित है, पराये धन पर जो लुब्ध हैं। जो स्पर्शनेन्द्रिय के विषय में अत्यन्त आसक्त हैं, स्त्रियों के रूप, शब्द, रस, गंध एवं संभोग में जो अत्यन्त इच्छा वाले हैं और पराया धन चुरा कर ही जो संतुष्ट रहने वाले हैं,, ऐसे चोरों को आरक्षक पकड़ लेते हैं। चौर्यकर्म एवं जारपन आदि पापकर्म के दुःखद फल से अनभिज्ञ वे पापी, राज्याधिकारियों के पास पहुँच कर दुःखी होते हैं। वे राज्याधिकारी बड़े निर्दय, दण्ड-विधान और वध - शास्त्र के ज्ञाता होते हैं, चोरों, लुच्चों और ठगों को भांपने-पहचानने में वे बड़े कुशल होते हैं। कई अधिकारी सैकड़ों प्रकार से (या सैकड़ों रुपयों की) घूस लेते हैं। झूठ, कपट, छल एवं वंचना करके, वेश बदल कर और भेदी रूप से चोरों को पकड़ने तथा भेद खुलवाने में बड़े निपुण होते हैं, सैकड़ों प्रकार से झूठ बोल कर वे अपने जाल में फांस लेते हैं। वे क्रूर अधिकारी परलोक से विमुख हो कर नरकगति में जाने वाले होते हैं । प्राणदण्ड आदि कठोरतम दण्ड की आज्ञा देने में वे विलम्ब नहीं करते, अपितु शीघ्रता करते हैं। वे आज्ञा देते हैं कि इस चोर को खुले रूप में नगर में, नगर के तीन मार्ग चतुर्पथ, राजमार्ग और सार्वजनिक स्थानों पर ले जाओ और समस्त लोगों के सम्मुख बेंत, डंडे, लाठी, पत्थर, लात, मुक्का, और अन्य साधनों से पीटो। खूब मारो, इतना मारो कि इसकी हड्डियाँ टूट जायें, गात्र-भंग हो जाये और सारे शरीर का मथन होकर शक्ति हीन हो जाय ।
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