SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 148
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १३१ **** चोर को दिया जाने वाला दण्ड ************************************************* चत्वर - जहाँ अनेक मार्ग मिलते हों। चतुर्मुख - चार द्वारों वाले-देवमंदिर या सार्वजनिक स्थान। महापथ - राजमार्ग। अट्ठारसकम्मकारणा जाइयंगमंगा कलुणा सुक्कोट्टकंठ-गलगतालु-जीहा जायंता पाणीयं विगय-जीवियासा तण्हाइया वरागा तं वि य ण लभंति वज्झपुरिसेहिं धाडियंता। तत्थय खर-फरुस-पडहघट्टियकूडग्गहगाढरुट्टणिसट्ठपरामुट्ठा वज्झयर-कुडिजुयणियत्था सुरत्तकणवीर-गहियविमुकुल-कंठे गुण-वज्झदूय आविद्धमल्लदामा, मरण भयुप्पण्णसेय-आयतणेहुत्तुपियकिलिण्णगत्ता चुण्णगुंडियसरीर-रयरेणुभरियकेसा कुसुंभगोकिण्णमुद्धया छिण्ण-जीवियासा घुण्णंता वज्झयाणभीया * तिलं तिलं चेव छिजमाणा सरीरविक्किंतलोहिओलित्ता कागणिमंसाणि खावियंता पावा खरफरुसएहिं तालिजमाणदेहा वातिग-णरणारीसंपरिवुडा पेच्छिज्जंता य णगरजणेण बज्झणेवत्थिया पणेजति णयरमज्झेण किवणकलुणा अत्ताणा असरणा अणाहा अबंधवा बंधुविप्पहीणा विपिक्खिंता दिसोदिसिं मरणभयुव्विग्गा आघायणपडिदुवार-संपाविया अधण्णा सूलग्गविलग्गभिण्णदेहा। शब्दार्थ - अट्ठारस - अठारह, कम्मकारणा - चौर्यकर्म के कारण हैं, जाइयंगमंगा - भग्न अंगोपांग वाले, कलुणा - करुणाजनक दशा है जिनकी-दीन, संक्कोट्टकंठगलगतालुजीहा - संताप के कारण उनका कंठ, गला, तालू और जिह्वा सूख जाती है, जायंतापाणीयं - पानी की याचना करते हैं, विगय - बीत चुकी-नष्ट हो चुकी, जीवियासा - जीवित रहने की आशा, तण्हाइया - प्यास के मारे, वरागा - विचारे, तं वि - तो भी, ण लभंति - प्राप्त नहीं करते। वज्झपुरिसेहिं - वधिक पुरुष-जल्लाद, धाडियंताले जाते हुए, तत्थय - वहाँ, खरफरुस-पडह-घट्टिय - कठोर एवं कर्कश आवाज वाला पटह-नगारा बजाया जाता है, कुडग्गह - कुटिलता से पर धन को चोरने वाले-चोर पर, गाढरुट्ठ- अत्यन्त रुष्ट हो कर, णिसट्ठपरामुट्ठा - चोरी से प्राप्त धन छीन लेते हैं और उसे पकड़ भी लेते हैं, वज्झयरकुडिजुयणियत्था - प्राणदण्ड पाये हुए मनुष्य के योग्य उसे दो वस्त्र पहनाये जाते हैं, सुरत्तकणवीरगहिय - कनेर के लाल फूलों से बनाई हुई, विमुकुल - विकसित पुष्पों से, कंठेगुण - गुण-कंठ-सूत्र के समान, वज्झदूय - वध्य-दूत-वध-चिह्न जैसी, आविद्ध मल्लदामा - पुष्पमाला पहनाई जाती है, मरणभयुप्पण - मृत्यु के भय से उत्पन्न, सेय- स्वेद-पसीने से, आयतणेहुत्तुपिय - शरीर जलता है और, किलिण्णागत्ता - सारा शरीर झरता है, चुण्णगुंडियसरीर - उसके शरीर पर चूर्ण-चूना लगा * 'वज्झपाणिप्पया' - पाठ भी है। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004201
Book TitlePrashna Vyakarana Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanlal Doshi
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2008
Total Pages354
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_prashnavyakaran
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy