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________________ “युद्धस्थल की वीभत्सता ११७ *************************************************** ************ भयंकरवायसपरिलेंतगिद्धमंडलभमंतच्छायंधकारगंभीरे - मांसलोलुप भयंकर कौओं और गिद्धों के झुण्डों के मंडराने से व्याप्त अंधकार के कारण भयंकर बने हुए, वसुवसुहविकंपियव्व - देवों और पृथ्वी को कम्पित करने वाले, पच्चक्खपिउवणं - प्रत्यक्ष पितृवन-श्मशान भूमि जैसे, परमरुद्धबीहणगं - जो अत्यन्त रौद्र एवं भयानक हो रही है, दुष्पवेसतरगं-जिसमें प्रवेश करना अत्यन्त कठिन है, अहिवयंतिप्रवेश करते हैं, संगामसंकर्ड - गहन युद्ध में, परधणं महंता - पराये धन में लुब्ध होने वाले। . भावार्थ - कोई बलवान् अपनी चमकती हुई नग्न तलवार ले कर शत्रु के हाथी पर चढ़ जाते हैं और अपनी शक्ति का परिचय देते हैं। वे गर्वोन्मत्त होते हैं। कुछ योद्धा शत्रु के साथ मल्लयुद्ध करते हैं। कोई वीर युद्ध में गर्वोन्मत्त हो कर हाथ में तलवार लिए अपने अभिमुख शत्रु पर चपलता पूर्वक प्रहार करते हैं, कई तलवार से हाथी की सूंड काट कर अंगहीन बना देते हैं। कोई भाले से किसी का पेट फोड़ देते हैं। रक्त के बहने से भूमि पर कीचड़ हो जाता है और मार्ग चिकने (फिसलने योग्य) हो जाते हैं। किसी का पेट फाड़ डालने से रक्त बहता है और आंते बाहर निकल पड़ती है। गाढ़ प्रहार के कारण किसी की इन्द्रियाँ फड़फड़ाहट करती (कम्पित होती) है और किसी की इन्द्रियाँ शून्य हो जाती हैं। मर्मस्थान में प्रहार होने से कोई छटपटा रहा है। कोई घायल हो कर असह्य वेदना के कारण करुणाजनक रुदन कर रहा है। जिनके सवार मागे गये हैं, ऐसे-हाथी-घोड़े और मदोन्मत्त हाथी, इधरउधर भटक रहे हैं, जिन्हें देख कर शंका एवं भय होता है। बहुत-से रथों की पताकाएं कट कर गिर गई हैं। कितने ही रथ भी नष्ट हो गए हैं। जिनके मस्तक कट गए हैं - ऐसे हाथियों के शरीरों से भूमि पटी हुई दिखाई देती है। नीचे गिरे हुए शस्त्र और आभूषण इधर-उधर बिखरे दिखाई देते हैं। जिन वीरों के मस्तक कट गये हैं, उनके धड़ इधर-उधर नाचते हुए दिखाई देते हैं। मांसलोलुप भयंकर कौओं और गिद्धों के झुण्ड के झुण्ड आकाश में घूमने से, अन्धकार हो जाने के कारण वह स्थान भयंकर हो जाता है। देवों और पृथ्वी को प्रकम्पित करने की शक्ति रखने वाले और पराये धन को हड़पने की इच्छा रखने वाले राजा आदि व्यक्ति, ऐसी युद्धभूमि में प्रवेश करते हैं-जो प्रत्यक्ष ही पितृभूमि-श्मशान भूमि के समान है तथा परम रौद्र एवं भयंकर है, जिसमें प्रवेश करना अत्यन्त कठिन है। विवेचन - इस सूत्र में युद्ध की विभीषिका का लोमहर्षक स्वरूप बताया गया है। लोभ के वशीभूत होकर मनुष्य, दूसरों का धन हरण करने के लिए बड़े-बड़े युद्ध का समर्थन करके मानवसंहार करता है। यह सब अदत्तादान रूप तीसरे अधर्म-पाप का परिणाम है। ___ अवरे पाइक्कचोरसंघा सेणावई-चोरवंद-पागड्डिका य अडवी-देसदुग्गवासी कालहरितरत्तपीतसुक्किल-अणेगसयचिंध-पट्टबद्धा परविसए अभिहणंति लुद्धा धणस्स कज्जे। शब्दार्थ - अवरे - अन्य, पाइक्कचोरसंघा - पैदल चल कर चोरी करने वाले चोरों का समूह, सेणावई - सेनापति, चोरवंदपागड्डिका - चोरों के समूह को प्रोत्साहित करते हैं, अडवीदेस - Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004201
Book TitlePrashna Vyakarana Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanlal Doshi
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2008
Total Pages354
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_prashnavyakaran
File Size8 MB
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