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________________ ११६ प्रश्नव्याकरण सूत्र श्रु० १ अ०३ *************************************************************** और पदाति सैनिक बड़े वेग से दौड़ते हैं। योद्धागण शीघ्रतापूर्वक अपने शत्रु पर शस्त्र प्रहार करते हैं। अपने प्रहार की सफलता देखकर वे दोनों हाथ ऊपर उठाकर अट्टहास करते हैं। इस कारण भी वहाँ कोलाहल उत्पन्न होता है। फलफलगावरणगहिय-गयवरपत्थिंत-दरियभडखल-परोप्परपलग्गजुद्धगवियविउसियवरासिरोस-तुरियअभिमुह-पहरितछिण्णकरिकर-विभंगियकरे अवइट्ठणिसुद्धभिण्णफालियपगलियरुहिर-कयभूमि-कद्दमचिलिचिल्लपहे कुच्छिदालियगलिंतरुलिंतणिभेल्लंतंत-फुरुफुरंत-अविगल-मम्माहय-विकयगाढदिण्णपहार-मुच्छितरुलंतवेंभलविलावकलुणे हयजोहभमंत-तुरग-उद्दाममत्तकुंजर-परिसंकियजणणिब्बुकच्छिण्णधय-भग्ग-रहवरणट्ठसिरकरिकलेवराकिण्ण-पतित-पहरण- . विकिण्णाभरण-भूमिभागे णच्चंत-कबंधपउरभयंकर-वायस-परिलेंत-गिद्धमंडलभमंतच्छायंधकार-गंभीरे। वसुवसुहविकंपियव्व-पच्चक्ख-पिउवणं परमरुहबीहणगं दुप्पवेसतरगं अहिवयंति संगामसंकडं परधणं महंता। शब्दार्थ - फलफलगावरणगहिय - शस्त्र-प्रहार को रोकने के लिए चर्मावरित फलक-ढाल लिये हुए, गयवरपत्थिंत - शत्रु के हाथी पर चढ़ते हैं, दरियभडखल - दुष्ट योद्धा अपने बल से गर्वित बने हुए, परोप्परलग्ग - एक दूसरे को मारने के लिए परस्पर युद्ध करते हैं, जुद्धगव्विय - युद्ध कौशल से गर्वित बने हुए, विउसियवरासिरोसतुरिय - अपनी खुली तलवारें लिए और क्रोध से तप्त बने हुए शीघ्र ही, अभिमुहपहरितछिण्णकरिकर - प्रहार कर के हाथी की सूंड काट कर विभंगियकरे - अंगहीन कर देते हैं अथवा हाथ काट देते हैं, अवइट्ठ - बाणों से बेधे गए, णिसुद्ध- नीचे गिराये हुए, त्रिशूलादि से भेदे और कुठारादि से फाड़े हुए, पगलियरुहिर - झरते हुए रक्त से, कयभूमिकहमचिलिचिल्लपहे - भूमि कीचड़ युक्त हो कर मार्ग चिकने बन गए हैं, कुच्छिदालिय - विदारित कुक्षि-पेट से, गलित - रक्त बहता है, रुलिंतणिभेल्लंतंत - आंते पेट से बाहर निकल गई हैं, फुरुफुरंतकम्पित हो रहे हैं, अविगल - विकल-शून्य हो रही है, मम्माहयविकयगाढदिण्णपहार- मर्मस्थान में हुए प्रबल प्रहार से, मुञ्छित - मूछित, रुलंत - भूमि पर लोटते हुए, वेंभल - व्याकुल हो, विलावकलुणे - करुणाजनक विलाप करते हैं, हयजोहभमंततुरग - जिनके योद्धा मारे गए हैं, ऐसे भटकते हुए घोड़े, उद्दाममत्त-कुंजर - मदोन्मत्त हाथी, परिसंकियजण - जिन्हें देख कर मनुष्यों को शंका होती है, णिब्बुकछिण्णधय भग्गरहवर - रथों की ध्वजाएं टूट कर गिर गई और बहुत-से रथ भी नष्ट हो गए हैं णट्ठसिरकरिकलेवराकिण्ण - जिनके मस्तक कट गये हैं, ऐसे बहुत-से हाथियों के शरीर से भूमि पटी हुई है, पतितपहरण - गिरे हुए अस्त्र-शस्त्रों से, विकिण्णाभरणभूमिभागे - भूमि पर बिखरे हुए आभरणों से, णच्चंतकबंधपुर - बहुत से मस्तक रहित धड़ नाचते हुए दिखाई देते हैं, Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004201
Book TitlePrashna Vyakarana Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanlal Doshi
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2008
Total Pages354
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_prashnavyakaran
File Size8 MB
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