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________________ युद्धस्थल की वीभत्सता उसियज्झय - ऊँची उठी हुई ध्वजा, वेजयंती - विजय-सूचक ध्वजा, चामरंचलंत - चलते हुए चामर, छत्त - छत्र, अंधयारगंभीरे - अन्धकार से, गम्भीर-गहन बना हुआ, हयहेसिय- घोड़ों की हिनहिनाहट, हत्थगुलगुलाइय - हाथियों की गुलगुलाहट - चिंघाड़ना, रहघणघणाइय रथों की घनघनाहट, पाइक्कहरह-राइय - पदाति सैनिकों की हरहराहट की ध्वनि, अप्फाडिय - भुजाओं का आस्फालन करते हुए-ताल ठोकना, सीहणाया - सिंहनाद करते हुए, छेलिय चित्कार करना, विघुट्ठक्कुट्ठकंठगयसद्द भीमगज्जिए - विरूप घोष एवं उत्कृष्ट नाद से तथा आनन्द व्यक्त करने वाली कण्ठ से निकली महाध्वनि से मेघ के समान महान् गर्जना हो रही है, सयराह - एक साथ, हसंत - हँसते, रुसंतरुष्ट हुए, कलकलरवे - कलकल-कोलाहल हो रहा है, आसूणियवयणरुद्दे - क्रोधित हो अपने मुंह को फुलाकर रौद्र रूप बनाये हुए, भीमदसणाधरोट्ठगाढदट्ठे - भयंकर भ्रकुटि चढ़ाकर क्रोध से अपना ओठ दाँतों से चबाता है, सप्पहार-णुज्जयकरे प्रहार करने के लिए जिनके हाथ उठे हुए हैं, अमरिसवसतिव्वरत्तणिद्धारितच्छे - क्रोध से किसी के नेत्र अत्यन्त फैलकर लाल हो जाते हैं, वेरदिट्ठिकुद्ध - वैर भाव से क्रोधित बने हुए, चिट्ठियतिवलि - ललाट में त्रिवली - तीन रेखाएं पड़ी हुई है, कुडिलभिउडिकय- णिलाडे - कुटिल-डेढ़ी भ्रकुटि उनके ललाट पर तनी हुई है, वहपरिणय वध करने में तत्परं बने हुए, णरसहस्स - - हजारों मनुष्य, विक्कमवियंभियबले विक्रम-पराक्रम से प्रकट हुआ है बल जिनका, वग्गंततुरगरहपहावियं समरभडा - घोडे रथ और पदाति सैनिक बड़े वेग से दौड़ते हैं, आवडियछेयलाघवपहारसाहिया - योद्धागण शीघ्रता एवं चपलता पूर्वक शस्त्रास्त्रों का प्रयोग करते हैं, समूसवियबाहुजुयलं - हर्षातिरेक से जिनकी दोनों भुजाएं ऊपर उठी हुई हैं, मुक्कट्टहासपुक्कंतबोलबहुले - मुक्त अट्टहास-खुलकर हँसते हुए एवं पुकारने से बहुत ही कोलाहल पूर्ण बने हुए । भावार्थ - युद्धोन्मत्त राजाओं के मस्तक के उन्नत मुकुट, किरीट और कुंडल अस्थिर बने हुएहिलते हुए नक्षत्रमाला के समान चमक रहे हैं। फरफराती हुई ध्वजाएं और विजय की सूचना देती हुई ऊँची पताकाएँ (अपनी छाया से ) छत्र एवं चामर के समान लगती हैं और उससे उत्पन्न अन्धकार से गंभीरता व्याप्त हो गई हैं। घोड़े हिनहिना रहे हैं, हाथी गुलगुलाहट कर रहे हैं, रथों की घनघनाहट हो रही है। पदाति सेना, हरहराहट करती हुई ताल ठोकती है और सिंहनाद करती है। आनन्द - सूचक महाघोष करती है। ये सभी ध्वनियाँ मिलकर मेघ के समान घोर गर्जना सुनाई देती है । वीरों के एक साथ हँसने तथा क्रोधित होकर ललकारने से घोर कोलाहल उत्पन्न हो गया है। क्रोधित होकर फुलाये ... हुए मुंह से वे वीर भयंकर दिखाई देते हैं। कोई भ्रकुटि चढ़ाकर कुपित हुआ अपने होठ को दाँतों से चबाता हुआ दिखाई दे रहा है, किसी के हाथ, शत्रु पर प्रहार करने के लिए ऊपर उठे हुए हैं, क्रोध के कारण किसी के नेत्र अत्यन्त लाल और बड़े दिखाई देते हैं और अपने शत्रु पर क्रोध करने के कारण किसी के ललाट पर त्रिवली (तीन रेखाएं) बन गई हैं। युद्धरत हजारों मनुष्य दूसरों को मारने का ही भाव लिए हुए हैं। आवेश के कारण उनके शरीर में अधिक बल दिखाई देता है । युद्धस्थल में घोड़े, रथ ****************** Jain Education International For Personal & Private Use Only ******************** - ११५ - www.jalnelibrary.org
SR No.004201
Book TitlePrashna Vyakarana Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanlal Doshi
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2008
Total Pages354
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_prashnavyakaran
File Size8 MB
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