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________________ ११२ प्रश्नव्याकरण सूत्र श्रु०१ अ०३ धन एवं राज्य में लुब्ध हो जाते हैं। वे बल और विशाल परिवार सहित दूसरे देश एवं राज्य का घात करने में तत्पर होते हैं। वे अपने विश्वस्त योद्धाओं को साथ लेकर युद्ध करने की तैयारी करते हैं। हाथियों, घोड़ों, रथों और पदाति रूप चतुरंगिनी सेना को लेकर वे दूसरे के राज्य पर चढ़ाई करते हैं। 'मैं वीर हूँ, योद्धा हूँ, अजेय हूँ' - इस प्रकार का गर्व करने वाले सैनिकों के साथ वे युद्ध करने के लिए प्रयाण करते हैं। फिर पद्मव्यूह, शकटव्यूह, शूचिकाव्यूह, चक्रव्यूह, सागरव्यूह और गरुड़व्यूह आदि व्यूह की रचना करके शत्रु-सेना को चारों ओर से घेर लेते हैं और पराजित करके उसकी संपत्ति का हरण कर लेते हैं। विवेचन - राजाओं का अपनी सम्पत्ति, वैभव एवं राज्य-सीमा का अतिक्रमण करके दूसरे राज्य की सीमा एवं संपत्ति को प्राप्त करने का प्रयत्न करना भी डाकूपन है। राज्य-लिप्सा के कारण वे युद्ध की रचना करते हैं। हजारों-लाखों मनुष्यों और हाथी-घोड़े आदि पशुओं को मार डालते हैं। अन्य चोर छुपकर चोरी करते हैं, तब राजा-महाराजा प्रकट रूप से आक्रमण करके दूसरे राज्य की सम्पत्ति और भूमि लूटते हैं। अपनी प्राप्त सम्पत्ति, वैभव और राज्य सीमा में संतुष्ट नहीं रहकर दूसरों की सम्पत्ति एवं राज्य पर ललचाना और आक्रमण करके लूट लेना भी अदत्त ग्रहण रूप पाप है। युद्ध के लिए शस्त्र-सज्जा अवरे रणसीसलद्धलक्खा संगामंसि अइवयंति अण्णद्धबद्धपरियर-उप्पीलिय चिंधपट्टगहियाउहपहरणा माढिवर-वम्मगुंडिया, आविद्धजालिया कवयकंकडइया उरसिरमुंह-बद्ध-कंठतोणमाइयत्तिवरफलहर-चिय-पहकर-सरहसखरचावकरकरंछियसुणिसिय-सरवरिसचडकरगमुयंत-घणचंड-वेगधाराणिवायमग्गे अणेगधणुमंडलग्गसंधिवा-उच्छलियसत्तिकणग-वामकरगहिय-खेडगणिम्मल-णिक्किट्ठखग्ग-पहरंतकोत-तोमर-चक्क-गया-परसु-मूसल-लंगल-सूल-लउल-भिंडमाला-सब्बल-पट्टिस- . चम्भेट्ठ दुघण-मोट्ठिय - मोग्गर-वरफलिह - जंत-पत्थर-दुहण-तोण-कुवेणीपीढकलियईलीप-हरण-मिलिमिलिमिलंत-खिप्पंत-विजुजल-विरचियसमप्पहणभतले फुडपहरणे महारणसंखभेरिवरतूर-पउर-पडुपहडाहयणिणाय-गंभीरणंदिय पक्खुभिय-विउलघोसे हय-गय-रह-जोह-तुरिय-पसरिय-उद्धतत-मंधकारबहुले कायर-णर-णयणहिययवाउलकरे। शब्दार्थ - अवरे - दूसरे कुछ राजा, सणसीसलद्धलक्खा - अनेक संग्रामों में विजय प्राप्त किये हुए, संगामंमि - संग्राम में, अइवयंति - स्वयं जाते हैं, सण्णद्धबद्धपरियर - सन्नद्ध-युद्ध सामग्री से सज और बद्धपरिकर-कवच और पट्ट से बद्ध-रक्षित हो, उप्पीलियचिंधपट्ट - मस्तक पर चिह्न पट Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004201
Book TitlePrashna Vyakarana Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanlal Doshi
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2008
Total Pages354
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_prashnavyakaran
File Size8 MB
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