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________________ ११३ **************************************************************** युद्ध के लिए शस्त्र-सजा बांधकर, गहियाउहपहरणा - शस्त्र ग्रहण करते हैं, माढिवरवम्मगुंडिया - रक्षा के कवच आदि उत्तम साधन से शरीर को वेष्टित करते हैं, आविद्धजालिया - लोह कंचुक-जालिका से वेष्टित होता है, कवयकंकडइया - लोहे का कांटेदार कवच धारण करते हैं, उरसिरमुहबद्धकंठतोण - उनकी पीठ पर ऊंचे मुंह वाले बाणों से भरा हुआ तूणीर बंधा रहता है, माइयत्ति - इस प्रकार वे युद्ध में आते हैं, वरफलहरचिय-पहकर-सरहसखरचावकर करंछिय सुणिसिय सरवरिस-चडकरगमुयंत-घणचंडवेगधारा णिवायमग्गे - ढाल आदि से युक्त, सेना की रचना करके, हर्ष एवं वेग युक्त, हाथ में अत्यन्त तीक्ष्ण शस्त्र लेकर, भयंकर शब्द करते हुए अत्यन्त तीक्ष्ण बाणों की वर्षा से इस प्रकार करते हैं कि जैसे अत्यन्त तेज धारा के साथ मेघ बरस रहा हो, अणेगधणुमंडलग्ग-संधिवा-उच्छलियसत्तिकणग - अनेक धनुष, बहुत-सी तलवारें और बहुत-से त्रिशूल और बाण, शत्रु पर प्रहार करने के लिए ऊपर उठे हुए दिखाई देते हैं, वामकरगहियखेडग - बायें हाथ से ढाल ग्रहण कर, णिम्मलणिक्किट्ठखग्ग - तीक्ष्ण निरावरण एवं चमकते हुए क्रूर खड्ग लिए हुए योद्धा, पहरंत-कोंततोमर-चक्क-गया-परसु-मूसल-लंगल-सूल-लउल-भिंड-माला - प्रहार करने में तत्पर ऐसे-कुन्त, तोमर, चक्र, गदा, कुठार, मूसल, हल, शूल, लाठी, भिंडमाल, सब्बल-पट्टिस-चम्मेढ़-दुघण-मोट्ठियमोग्गर - भाला, पट्ठिस, चर्मेष्ट-चमड़े से मढ़ा हुआ पाषाणमय शस्त्र मुद्गर, मौष्टिक से, वरफलिह-जंतपत्थर-दुहण-तोण-कुवेणी-पीढकलिय - परिघ, यंत्रपत्थर-गोफण आदि से फेंके गये पत्थरों से द्रुघण-मुद्गर विशेष शरधि, कुवेणी-पीढकलित-पीठ यंत्र से युक्त, ईलीपहरण - दुधारी तलवार, मिलिमिलिमिलंत खिप्पंत विजुजल विरचिय समप्पहणभतले - अंत्यन्त चमकीले, प्रभायुक्त तथा आकाश में चमक कर गिरती हुई बिजली के समान चंचल दिखाई देने वाले, फुडपहरणे - शस्त्र स्पष्ट दिखाई देते हैं, महारण – बड़े संग्राम में, संखभेरि वर-तूर-पउर-पडुपहडाहयणिणाय-गंभीरणंदियशंख, भेरी, तूर्य और ढोल नगाड़े आदि के बजाने से निकली हुई गम्भीर ध्वनि से हर्षित, पक्खुभियविउल घोसे - वीरों के सिंहनाद से तथा क्षुभित हुए कायरों की चित्कारी और आर्तनाद से कालोहलपूर्ण, हय-गय-रह-जोह-तुरिय-पसरिय-उद्धत-तमंधकार बहुले - दौड़ते हुए घोड़े, हाथी, रथ और योद्धाओं के पांवों से उठी हुई धूल के कारण आकाश में व्याप्त हो जाने से संग्राम भूमि अन्धकार से परिपूर्ण होती है, कायर-णर-णयण-हिययवाउलकरे - वह युद्ध भूमि कायर मनुष्य के हृदय और नेत्र को व्याकुल कर देती है। भावार्थ - कई युद्ध में विजय प्राप्त किये हुए कुछ अन्य राजा आदि संग्राम में जाते हैं। वे कवच, कमरपट्टा, मस्तक पर चिह्नांकित पट्ट (टोप जैसा पट्ट जो ललाट और मस्तक की रक्षा करता है) धारण करते हैं और अनेक प्रकार के शस्त्र ग्रहण करते हैं। वे शरीर की रक्षार्थ उत्तम प्रकार के कवच पहनते हैं। लोहमय जालिका और कांटेदार कवच धारण करते हैं। ऊँचा मुंह किये हुए बाणों से भरे हुए तूणीर उनकी छाती पर बंधा रहता है। वे ढाल आदि से युक्त होकर सेना की व्यूह रचना करते हैं। हर्ष और Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004201
Book TitlePrashna Vyakarana Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanlal Doshi
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2008
Total Pages354
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_prashnavyakaran
File Size8 MB
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