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निशीथ सूत्र
पुच्छिय - पूछने का तात्पर्य शय्यातर के संबंध में विशेष जानकारी करना, उसकी सामाजिक प्रतिष्ठा, विशेषता, गरिमा आदि को जानना है।
गवेसिय - गवेषणा का तात्पर्य घर को, शय्यातर को प्रत्यक्षतः देखना, जानना या . पहचानना है ताकि किसी प्रकार की भ्रान्ति उत्पन्न न हो सके। ____ कोई भी साधु जाने, पूछे और गवेषणा किए बिना शय्यातर के यहाँ भिक्षा लेने का विचार लिए प्रवेश न करे, ऐसी आचार मर्यादा है। यदि कोई ऐसा किए बिना ही प्रवेश करता है तो वह प्रायश्चित्त का भागी होता है। ___ जाने, पूछे और गवेषणा किए बिना भिक्षार्थ जाने पर अनेक अप्रत्याशित बाधाएँ आशंकित हैं।
सागारिक की नेश्राय से आहार-ग्रहण का प्रायश्चित्त जे भिक्खू सागारियणीसाए असणं वा पाणं वा खाइमं वा साइमं वा ओभासिय ओभासिय जायइ जायंतं वा साइजइ॥ ४९॥ ___कठिन शब्दार्थ - णीसाए - नेश्राय में, असणं - अशन - भोज्य पदार्थ, पाणं - पान - अचित्त पानी, खाइमं - खाद्य पदार्थ, साइमं - स्वाद्य पदार्थ, ओभासिय - विशिष्ट वचन रचना पूर्वक, जायइ - याचना करता है। __ भावार्थ - ४९. जो भिक्षु सागारिक की नेश्राय से अशन, पान, खाद्य, स्वाद्य रूप चतुर्विध आहार की याचना करता है अथवा याचना करते हुए का अनुमोदन करता है, उसे लघुमासिक प्रायश्चित्त आता है।
विवेचन - 'णीसाए' का संस्कृत रूप 'निःश्रय' है। नि:श्रय का अर्थ प्रश्रय या विशेष सहारा लेना है। जैसाकि पहले व्याख्यात हुआ है, साधु का जीवन सर्वथा आत्म-निर्भर होता है। वह भिक्षाचर्या आदि सभी कार्य आत्म-निर्भरता एवं स्वावलम्बितापूर्वक करता है। यथेष्ट भिक्षा-प्राप्ति आदि के भाव से सागारिक को साथ लेकर भिक्षार्थ जाना निषिद्ध है।
सागारिक एक सामाजिक व्यक्ति होता है। अन्य गृहस्थों के साथ उसके आदानप्रदानात्मक, पारस्परिक सहयोगात्मक अनेक संबंध होते हैं। उसके प्रभाव के कारण दाता न चाहते हुए भी संकोचवश यथेष्ट भिक्षा देने को मन ही मन बाध्य होता है, यह आशंकित है।
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