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. द्वितीय उद्देशक - अन्यतीर्थिक आदि के साथ भिक्षाचर्या आदि हेतु......
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सद्धिं बहिया वियारभमिं वा विहारभूमिं वा णिक्खमइ वा पविसइ वा णिक्खमंतं वा पविसंतं वा साइजड़॥ ४१॥ ... जे भिक्खू अण्णउत्थिएण वा गारथिएण वा परिहारिओ अपरिहारिएण सद्धिं गामाणुगामं दूइज्जइ दूइज्जंतं वा साइजइ॥४२॥
कठिन शब्दार्थ - परिहारिओ - पारिहारिक - मूल गुणों एवं उत्तरगुणों का धारक अथवा परिहार-तप में निरत, सद्धिं - साथ, गाहावइकुलं - गाथापतिकुल - गृहस्थ परिवार, पिंडवायपडियाए - पिण्डपातप्रतिज्ञा - भिक्षा ग्रहण करने की बुद्धि या उद्देश्य से, णिक्खमइनिष्क्रमण करता है - निकलता है, बहिया - बाहर, वियारभूमिं - विचारभूमि - मल-मूत्र आदि विसर्जन स्थान, विहारभूमि - विहारभूमि - स्वाध्यायभूमि, पविसइ - प्रवेश करता है। . भावार्थ - ४०. जो भिक्षु अन्यतीर्थिक या गृहस्थ के साथ तथा पारिहारिक भिक्षु अपारिहारिक भिक्षु के साथ गृहस्थ कुल में भिक्षा लेने के उद्देश्य से जाता है, उनके घरों में प्रवेश करता है अथवा वैसा करते हुए का अनुमोदन करता है, उसे लघुमासिक प्रायश्चित्त आता है।
४१. जो भिक्षु अन्यतीर्थिक या गृहस्थ के साथ तथा पारिहारिक भिक्षु अपारिहारिक भिक्षु के साथ बाहर विचारभूमि या विहारभूमि में जाता है, प्रवेश करता है अथवा वैसा करते हुए का अनुमोदन करता है, उसे लघुमासिक प्रायश्चित्त आता है।
४२. जो भिक्षु अन्यतीर्थिक या गृहस्थ के साथ तथा पारिहारिक भिक्षु अपारिहारिक भिक्षु के साथ ग्रामानुग्राम विचरण करता है अथवा वैसा करते हुए का अनुमोदन करता है, उसे लघुमासिक प्रायश्चित्त आता है।
विवेचन - यहाँ सूत्र संख्या ४० में 'गाहावइकुल' (गाथापतिकुल) का प्रयोग हुआ है। गाहावइ - गाथापति शब्द जैन आगमों में विशेष रूप से प्रयुक्त हुआ है। गाथा + पति इन दो शब्दों के योग से गाथापति बनता है। गाहा या गाथा का एक अर्थ घर है। इसका एक अन्य अर्थ प्रशस्ति भी है। धन, धान्य, समृद्धि, वैभव आदि के कारण बड़ी प्रशस्ति का अधिकारी होने से भी एक संपन्न, समृद्ध गृहस्थ के लिए इस शब्द का प्रयोग टीकाकारों ने माना है।
उपासकदशांगसूत्र में भगवान् महावीर स्वामी के आनन्द आदि दस प्रमुख श्रमणोपासकों का वर्णन है, जो बड़े ही वैभव-संपन्न तथा धर्म-निष्ठ थे। उन सबके नाम से पूर्व विशेषण के रूप में गाथापति (गाहावइ) शब्द का प्रयोग हुआ है।
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