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निशीथ सूत्र
इस सूत्र में प्रयुक्त "णितिय' शब्द के नैत्यिक और नियत - ये दोनों संस्कृत रूप इसी भाव के अभिव्यंजक हैं।
दानार्थ तैयार किए गए आहार-ग्रहण का प्रायश्चित्त जे भिक्खू णितियं पिंडं भुंजइ भुंजंतं वा साइजइ॥ ३३॥ जे भिक्खू णितियं अवड्ढभागं भुंजइ भुंजंतं वा साइज्जइ॥ ३४॥ जे भिक्खू णितियं भागं भुंजइ भुंजंतं वा साइज्जइ॥ ३५॥ : जे भिक्खू णितियं उववभागं भुंजइ भुंजंतं वा साइज्जइ॥ ३६॥
कठिन शब्दार्थ - णितियं पिंडं - प्रतिदिन संपूर्णतः दान में दिया जाने वाला आहार, अवउभागं - अपार्द्ध भाग - आधा हिस्सा, णितियं भागं - नित्यप्रति दान में दिया जाने वाला एक तिहाई भाग, उवड्डभागं - नित्य प्रति दिए जाने वाले एक तिहाई भाग का आधा भाग - छट्ठा भाग। .
भावार्थ - ३३. (जिन कुलों में) तैयार किया गया समग्र आहार प्रतिदिन दान में दिया जाता है, जो भिक्षु उसे लाता है, उसका भोग - सेवन करता है या सेवन करते हुए का अनुमोदन करता है, उसे लघुमासिक प्रायश्चित्तं आता है।
३४. (जिन कुलों में) तैयार किए गए आहार का आधा भाग प्रतिदिन दान में दिया जाता है, जो भिक्षु उसे लाता है, उसका सेवन करता है या सेवन करते हुए का अनुमोदन . करता है, उसे लघुमासिक प्रायश्चित्त आता है। .
३५. (जिन कुलों में) तैयार किए गए आहार का तीसरा भाग प्रतिदिन दान में दिया जाता है, जो भिक्षु उसे लाता है, उसका भोग करता है या भोग करते हुए का अनुमोदन करता है, उसे लघुमासिक प्रायश्चित्त आता है। - ३६. (जिन कुलों में) तैयार किए गए आहार का छट्ठा भाग प्रतिदिन दान में दिया जाता है, जो भिक्षु उसे लाता है, उसका भोग-सेवन करता है या सेवन करते हुए का अनुमोदन करता है, उसे लघुमासिक प्रायश्चित्त आता है।
विवचन - इन सूत्रों में प्रयुक्त ‘णितियं पिंड' अवड्डभार्ग' 'णितिय भार्ग' तथा '
उ भाग' के रूप में जो दान में दिए जाने वाले आहार का वर्णन हुआ है, यहाँ उसका अर्थ निशीथ भाष्य की निम्नांकित गाथा के आधार पर किया गया है -
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