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विंश उद्देशक - मायारहित एवं मायारहित दोष प्रत्यालोचक हेतु.....
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६. इसके पश्चात् मायासहित या मायारहित - किसी भी प्रकार से आलोचना करने पर वही पाण्मासिक (छह मास का) प्रायश्चित्त आता है। . ७. किसी भिक्षु द्वारा अनेक बार मासिक परिहारस्थान का प्रतिसेवन कर मायारहित आलोचना करने पर एक मास का एवं मायासहित आलोचना करने पर दो मास का प्रायश्चित्त आता है।
८. किसी भिक्षु द्वारा अनेक बार द्विमासिक परिहारस्थान का प्रतिसेवन कर मायारहित आलोचना करने पर दो मास का तथा मायासहित आलोचना करने पर त्रिमासिक प्रायश्चित्त आता है।
९. किसी भिक्षु द्वारा अनेक बार त्रिमासिक परिहारस्थान का प्रतिसेवन कर मायारहित आलोचना करने पर तीन मास का और मायासहित आलोचना करने पर चातुर्मासिक प्रायश्चित्त आता है।
१०. किसी भिक्षु द्वारा अनेक बार चातुर्मासिक परिहारस्थान का प्रतिसेवन कर मायारहित आलोचना करने पर चार मास का एवं मायासहित आलोचना करने पर पंचमासिक प्रायश्चित्त आता है।
११. किसी भिक्षु द्वारा अनेक बार पंचमासिक परिहारस्थान का प्रतिसेवन कर मायारहित आलोचना कर पाँच मास का तथा मायासहित आलोचना करने पर पाण्मासिक प्रायश्चित्त आता है।..
- १२. इसके पश्चात् मायासहित या मायारहित - किसी भी प्रकार से आलोचना करने पर वही पाण्मासिक प्रायश्चित्त आता है।
१३. किसी भिक्षु द्वारा मासिक, द्विमासिक, त्रिमासिक, चातुर्मासिक और पंचमासिक - इन परिहार स्थानों में से किसी का (एक बार) प्रतिसेवन कर मायारहित आलोचना करने पर (क्रमशः) मासिक, द्विमासिक, त्रिमासिक, चातुर्मासिक एवं पंचमासिक तथा मायासहित आलोचना करने पर (क्रमशः) द्विमासिक, त्रिमासिक, चातुर्मासिक, पंचमासिक और पाण्मासिक प्रायश्चित्त आता है।
इसके उपरान्त मायासहित या मायारहित - किसी भी प्रकार से आलोचना करने पर वही षाण्मासिक प्रायश्चित्त आता है।
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