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निशीथ सूत्र
साइरेगं वा छम्मासियं वा। तेण परं पलिउंचिए वा अपलिउंचिए वा ते चेव छम्मासा॥ १५॥
जे भिक्खू बहुसोवि चाउम्मासियं वा बहुसोवि साइरेगचाउम्मासियं वा बहुसोवि पंचमासियं वा बहुसोवि साइरेगपंचमासियं वा एएसिं परिहारट्ठाणाणं अण्णयरं परिहारट्ठाणं पडिसेवित्ता आलोएजा, अपलिउंचिय आलोएमाणस्स बहसोवि चाउम्मासियं वा बहसोवि साइरेगं वा बहसोवि पंचमासियं वा बहसोवि साइरेगं वा, पलिउंचिय आलोएमाणस्स बहुसोवि पंचमासियं वा बहुसोवि साइरेगं वा बहुसोवि छम्मासियं वा। तेण परं पलिउंचिए वा अपलिउंचिए वा ते चेव छम्मासा॥१६॥ ____ कठिन शब्दार्थ - पडिसेवित्ता - प्रतिसेवन कर, आलोएज्जा - आलोचना करे - गुरु के समक्ष अपने पापस्थानों का प्रकाशन करे, अपलिउंचिय - अपरिकुच्य - मायारहित होकर, पलिउंचिय - मायायुक्त (कपट पूर्वक) होकर, आलोएमाणस्स - आलोचना करने वाले को, बहुसोवि - अनेक बार, साइरेग - सातिरेक - कुछ अधिक। ___ भावार्थ - १. किसी भिक्षु द्वारा मासिक परिहारस्थान का प्रतिसेवन कर मायारहित आलोचना करने पर एक मास का तथा मायासहित आलोचना करने पर दो मास का प्रायश्चित्त आता है।
२. किसी भिक्षु द्वारा द्विमासिक परिहारस्थान का प्रतिसेवन कर मायारहित आलोचना करने पर दो मास का और मायासहित आलोचना करने पर तीन मास का प्रायश्चित्त आता है। __३. किसी भिक्षु द्वारा त्रैमासिक परिहारस्थान का प्रतिसेवन कर मायारहित आलोचना करने पर तीन मास का एवं मायासहित आलोचना करने पर चातुर्मासिक प्रायश्चित्त आता है।
- ४. किसी भिक्षु द्वारा चातुर्मासिक परिहारस्थान का प्रतिसेवन कर मायारहित आलोचना करने पर चार मास का तथा मायासहित आलोचना करने पर पाँच मास का प्रायश्चित्त आता है। - ५. किसी भिक्षु द्वारा पंचमासिक परिहारस्थान का प्रतिसेवन कर मायारहित आलोचना करने पर पाँच मास का और मायासहित आलोचना करने पर पाण्मासिक प्रायश्चित्त आता है।
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