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निशीथ सूत्र .
कठिन शब्दार्थ - पयमग्गं - पद-मार्ग - पैदल चलने का रास्ता, संकमं - संक्रम - जल एवं कीचड़ को लांघने के लिए पत्थर आदि रखकर रास्ता बनाना, अवलंबणं - अवलम्बन - सीढियाँ आदि का निर्माण, जिसके सहारे ऊपर के स्थान पर चढ़ा जा सके, पहुँचा जा सके, अण्णउत्थिएण - अन्यतीर्थिक - जैनेतर द्वारा, गारथिएण - गृहस्थ द्वारा, कारेइ - कराता है, दगवीणियं - उदकवीणिका - पानी निकालने की नाली, सिक्कगं - छींका, सिक्कगणंतगं - छींके का ढक्कन, सोत्तियं - सूत की, रज्जुयं - डोरी की, . चिलिमिलिं - चिलमिलिका - पर्दा या मसहरी (मच्छरदानी)। . __भावार्थ - ११. जों साधु किसी अन्यतीर्थिक द्वारा या गृहस्थ द्वारा पैदल चलने का मार्ग, जल या कीचड़ को लांघने हेतु पत्थर आदि रखवा कर रास्ता तथा ऊँचे स्थान पर चढ़ने
और उतरने के लिए सीढियाँ आदि बनवाता है अथवा बनवाते हुए का अनुमोदन करता है तो उसे गुरुमासिक प्रायश्चित्त आता है।
१२. जो साधु किसी अन्यतीर्थिक द्वारा या गृहस्थ द्वारा पानी को निकालने की नाली बनवाता है अथवा बनवाते हुए का अनुमोदन करता है तो उसे गुरुमासिक प्रायश्चित्त आता है।
१३. जो साधु किसी अन्यतीर्थिक द्वारा या गृहस्थ द्वारा छींका या छींके का ढक्कन बनवाता है अथवा बनवाते हुए का अनुमोदन करता है तो उसे गुरुमासिकं प्रायश्चित्त आता है। - १४. जो साधु किसी अन्यतीर्थिक द्वारा या गृहस्थ द्वारा सूत की या डोरी की चिलमिलिकामसहरी या पर्दा बनवाता है अथवा बनवाते हुए का अनुमोदन करता है तो उसे गुरुमासिक प्रायश्चित्त आता है।
विवेचन - श्रमण-दीक्षा स्वीकार करते हुए भिक्षु प्रतिज्ञाबद्ध होता है कि मैं आज से मन, वचन, काय द्वारा कृत, कारित, अनुमोदित पूर्वक कोई भी सावध - पापयुक्त प्रवृत्ति नहीं करूंगा। ___ इस प्रतिज्ञा के अनुसार वह कोई भी आरम्भ-समारम्भ मूलक कार्य नहीं करवा सकता, क्योंकि वे हिंसा आदि के कारण सावध होते हैं। सावध प्रवृत्ति में संलग्न होना दोष है, प्रायश्चित्त योग्य है। ____ इन सूत्रों में पथ, रास्ता, नाली आदि के निर्माण का उल्लेख हुआ है। वर्षा ऋतु में वैसी स्थितियाँ उत्पन्न हो जाती हैं, जिससे साधुओं को अपने उपाश्रय से बाहर आने-जाने में कठिनाई होती है।
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