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निशीथ सूत्र
अनुभव करने लगते हैं, वैसे भिक्षु ऐसे गण की तलाश करते हैं, जहाँ संयम पालन पर उतना अधिक जोर नहीं दिया जाता जितना तत्त्वतः दिया जाना चाहिए। यत्किंचित् शैथिल्य भी वहाँ रहता है। शारीरिक, बाह्य सुविधा की दृष्टि से भिक्षु श्रेष्ठ गुणसंपन्न गण को छोड़ कर चला जाता है तो यह उसकी दौर्बल्य युक्त मानसिकता का द्योतक है, दोषयुक्त है। अत एव वह प्रायश्चित्त योग्य है।
जो मानसिक अस्थिरता, संयमपालन में अदृढता के कारण बार-बार गण परिवर्तन करता है, आगमों में उसे 'पापश्रमण' कहा गया है। यह दोष सबल दोषों में परिगणित होता है।
कदाग्रही भिक्षु के साथ आदान-प्रदान विषयक प्रायश्चित्त जे भिक्खू वुग्गहवक्कंताणं असणं वा पाणं वा खाइमं वा साइमं वा देइ देंतं वा साइज्जइ॥ १७॥
जे भिक्खू वुग्गहवक्कंताणं असणं वा पाणं वा खाइमं वा साइमं वा पडिच्छइ पडिच्छंतं वा साइजइ॥ १८॥
जे भिक्खू वुग्गहवक्कंताणं वत्थं वा पडिग्गहं वा कंबलं वा पायपुंछणं वा देइ देंतं वा साइजइ॥ १९॥ .. ___ जे भिक्खू वुग्गहवक्कंताणं वत्थं वा पडिग्गहं वा कंबलं वा पायपुंछणं वा पडिच्छइ पडिच्छंतं वा साइज्जइ॥२०॥
जे भिक्खू वुग्गहवक्कंताणं वसहिं देइ देंतं वा साइज्जइ॥२१॥
जे भिक्खू वुग्गहवक्कं ताणं वसहिं पडिच्छइ पडिच्छंतं वा साइज्जइ॥ २२॥
जे भिक्खू वुग्गहवक्कंताणं वसहिं अणुपविसइ अणुपविसंतं वा साइज्जइ॥ २३॥
जे भिक्खू वुग्गहवक्कंताणं सज्झायं देइ.देंत वा साइजइ॥ २४॥
जे भिक्खू वुग्गहवक्कंताणं सज्झायं पडिच्छइ पडिच्छंतं वा साइज्जइ॥ २५॥
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