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निशीथ सूत्र
९. जो भिक्षु सचित्त गन्ने की फांकें - लंबे-पतले टुकड़े, गन्ने के टुकड़े - गंडेरी, गन्ने के पर्वों का मध्यवर्ती भाग, गन्ने के खण्ड - छिलके सहित टुकड़े, गन्ने के छिलके, गन्ने के छिले हुए टुकड़े, गन्ने के रससंपृक्त छिलके या रस, गन्ने के छोटे-छोटे गोल टुकड़े - इनमें से किसी को भी चूसता है अथवा चूसने वाले का अनुमोदन करता है ।
१०. जो भिक्षु सचित्त प्रतिष्ठित गन्ने की फांके - लंबे-पतले टुकड़े, गन्ने के टुकड़े गंडेरी, गन्ने के पर्वों का मध्यवर्ती भाग गन्ने के खण्ड - छिलके सहित टुकड़े, गन्ने के छिलके, गन्ने के छिले हुए टुकड़े, गन्ने के रससंपृक्त छिलके या रस, गन्ने के छोटे-छोटे गोल टुकड़े इनमें से किसी को भी खाता है या खाने वाले का अनुमोदन करता है।
११. जो भिक्षु सचित्तप्रतिष्ठित गन्ने की फांके - लंबे-पतले टुकड़े - गंडेरी, गन्ने के पर्वों का मध्यवर्ती भाग, गन्ने के खण्ड छिलके सहित टुकड़े, गन्ने के छिलके, गन्ने के छिल हुए टुकड़े, गन्ने के रससंपृक्त छिलके या रस, गन्ने के छोटे-छोटे गोल टुकड़े - इनमें से किसी को भी चूसता है अथवा चूसने वाले का अनुमोदन करता है ।
इस प्रकार उपर्युक्त अविहित कार्य करने वाले भिक्षु को लघु चातुर्मासिक प्रायश्चित्त आता है।
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विवेचन - पन्द्रहवें उद्देशक में सचित्त आम्र फल का विविध रूप में सेवन प्रायश्चित्त . योग्य बतलाया गया है । वहाँ आम्र के उल्लेख से सभी फल उपलक्षित हैं।
इक्षु फलों के अन्तर्गत नहीं आता, क्योंकि वह स्कन्ध रूप में समग्रतया सेवन करने योग्य - खाने, चूसने आदि योग्य है । उसका स्कन्ध संपूर्णतः मधुर होता है।
प्रारम्भ के चार सूत्रों में सामान्यतः सचित्त इक्षु सेवन प्रायश्चित्त योग्य बतलाया गया है तथा अन्तिम चार सूत्रों में इक्षु के खण्ड, टुकड़े, गोलक आदि विविध विभागों का सेवन प्रायश्चित्त योग्य प्रतिपादित हुआ।
आचारांग सूत्र में इक्षु को बहु- उज्झित-धर्म युक्त बतलाया गया है। उसका सेवन परिवर्जनीय कहा गया है । उज्झित का अर्थ त्यक्त या त्याग युक्त है । समग्रतया मधुर और आस्वाद्य होने से वह ऐसा स्वभाव लिए हुए है कि वह तत्क्षण व्यक्ति को आकृष्ट कर लेता है । अत एव वह अत्यन्त उज्झित त्यक्त करने योग्य है, त्याज्य है ।
आचारांग सूत्र में अचित्त इक्षु के ग्रहण का विधान है। उसका आशय यह है कि
* आचारांग सूत्र २.१.१०
• आचारांग सूत्र २.७.२
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