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पंचदश उद्देशक - गवेषणा के बिना वस्त्र-ग्रहण विषयक प्रायश्चित्त .
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९७. जो भिक्षु नित्यपिण्डभोजी से वस्त्र, पात्र, कंबल या पादपोंछन लेता है अथवा लेने वाले का अनुमोदन करता है। ____९८. जो भिक्षु संसक्त को वस्त्र, पात्र, कंबल या पादपोंछन देता है अथवा देने वाले का अनुमोदन करता है।
९९. जो भिक्षु संसक्त से वस्त्र, पात्र, कंबल या पादपोंछन लेता है अथवा लेने वाले का अनुमोदन करता है।
इस प्रकार उपर्युक्त अविहित कार्य करने वाले भिक्षु को लघु चातुर्मासिक प्रायश्चित्त आता है। . विवेचन - जिस प्रकार पिछले सूत्रों में पार्श्वस्थ आदि के साथ आहार लेने-देने के संदर्भ में प्रायश्चित्त का विधान हुआ है, उसी प्रकार इन सूत्रों में वस्त्र, पात्र, कंबल एवं पादपोंछन आदि उपधि लेना-देना प्रायश्चित्त योग्य बतलाया गया है। यहाँ भी वे ही दोष हैं, जो वहाँ वर्णित हुए हैं। . .. गवेषणा के बिना वस्त्र-ग्रहण विषयक प्रायश्चित्त - जे भिक्खू जायणावत्थं वा णिमंतणावत्थं वा अजाणिय अपुच्छिय अगवेसिय पडिग्गाहेइ पडिग्गाहेंतं वा साइजइ से य वत्थे चउण्हं अण्णयरे सिया, तंजहा - णिच्चणियंसणिए म(ज्झण्हि )जणिए छणूसविए रायदुवारिए॥१००॥
- कठिन शब्दार्थ - जायणावत्थं - याचनवस्त्र - मांगा जाने वाला वस्त्र, णिमंतणावत्थंनिमंत्रणवस्त्र - गृहस्थ द्वारा आमंत्रित कर दिया जाने वाला वस्त्र, अजाणिय - बिना. जाने, अपुच्छिय - बिना पूछे, अगवेसिय - बिना गवेषणा किए, चठण्हं - चार प्रकार के, णिच्चणियंसणिए - नित्य प्रयोग में लेने योग्य, मजणिए - स्नान में प्रयोज्य, छणूसविएउत्सव आदि में प्रयोजनीय, रायदुवारिए - राजदरबार में उपयोग में लेने योग्य।
भावार्थ - १००. जो भिक्षु याचना द्वारा या आमंत्रण द्वारा प्राप्त किए जाने वाले वस्त्र को बिना जाने, बिना पूछे, बिना गवेषणा किए लेता है अथवा लेने वाले का अनुमोदन करता है, उसे लघु चौमासी प्रायश्चित्त आता है। " - वह वस्त्र इन (निम्नांकित) चार प्रकार के वस्त्रों में से कोई हो सकता है -
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