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पंचदश उद्देशक - पार्श्वस्थ आदि से वस्त्र लेने-देने का प्रायश्चित्त
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आहार का आदान-प्रदान नहीं कल्पता। क्योंकि उनका जीवन सर्वथा निरवद्य नहीं होने से सावद्य पोषण का दोष आता है।
__ दूसरे शब्दों में आहार देने से उनके एषणो दोषों का एवं अन्य दूषित प्रवृत्तियों का तथा पार्श्वथ आदि से आहार गृहीत करने पर उद्गम आदि दोषयुक्त आहार का सेवन आशंकित होता है।
.. गृहस्थ को वस्त्र देने का प्रायश्चित्त जे भिक्खू अण्णउत्थियस्स वा गारत्थियस्स वा वत्थं वा पडिग्गहं वा कंबलं वा पायपुंछणं वा देइ देंतं वा साइज्जइ॥ ८९॥
भावार्थ - ८९. जो भिक्षु अन्यतीर्थिक या गृहस्थ को वस्त्र, पात्र, कंबल या पादपोंछन देता है अथवा देने वाले का अनुमोदन करता है, उसे लघु चौमासी प्रायश्चित्त आता है।
विवेचन - जिस प्रकार गृहस्थ आदि को अशन-पान देने से भिक्षु उसके सावध जीवन का परिपोषक होने के कारण प्रायश्चित्त का भागी होता है, उसी प्रकार वस्त्र देना भी प्रायश्चित्त योग्य है क्योंकि वस्त्र भी देहरक्षा का एक विशेष साधन है। भिक्षु का सदैव यही लक्ष्य रहे कि वह सर्वथा निरवद्य, महाव्रतोपेत जीवन का पालन करे तथा वैसे जीवन का पालन करने वालों से ही इस प्रकार का सहयोग करे।
पार्श्वस्थ आदि से वस्त्र लेने-देने का प्रायश्चित्त ___ जे भिक्खू पासत्थस्स वत्थं वा पडिग्गहं वा कंबलं वा पायपुंछणं वा देइ देंतं वा साइजइ॥ ९०॥ .
जे भिक्खू पासत्थस्स वत्थं वा पडिग्गहं वा कंबलं वा पायपुंछणं वा पडिच्छइ पडिच्छंतं वा साइज्जइ॥ ९१॥
जे भिक्खू ओसण्णस्स वत्थं वा पडिग्गहं वा कंबलं वा पायपुंछणं वा देइ देंतं वा साइजइ॥ ९२॥
जे भिक्खू ओसण्णस्स वत्थं वा पडिग्गहं वा कंबलं वा पायपुंछणं वा पडिच्छइ पडिच्छंतं वा साइजइ॥ ९३॥
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