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निशीथ सूत्र ...............................................................
- भावार्थ - ७९. जो भिक्षु पार्श्वस्थ को अशन-पान-खाद्य-स्वाद्य रूप चतुर्विध आहार देता है या देने वाले का अनुमोदन करता है।
८०. जो भिक्षु पार्श्वस्थ से अशन-पान-खाद्य-स्वाद्य रूप चतुर्विध आहार प्रतिगृहीत करता है - लेता है या लेने वाले का अनुमोदन करता है।
८१. जो भिक्षु अवसन्न को अशन-पान-खाद्य-स्वाद्य रूप चतुर्विध आहार देता है अथवा देने वाले का अनुमोदन करता है।
८२. जो भिक्षु अवसन्न से अशन-पान-खाद्य-स्वाद्य रूप चतुर्विध आहार लेता है या लेने वाले का अनुमोदन करता है।
८३. जो भिक्षु कुशीलसेवी को अशन-पान-खाद्य-स्वाद्य रूप चतुर्विध आहार देता है अथवा देने वाले अनुमोदन करता है।
८४. जो भिक्षु कुशीलसेवी से अशन-पान-खाद्य-स्वाद्य रूप चतुर्विध आहार लेता है या लेने वाले का अनुमोदन करता है।
८५. जो भिक्षु नित्यपिण्डभोजी को अशन-पान-खाद्य-स्वाद्य रूप चतुर्विध आहार देता है अथवा देने वाले का अनुमोदन करता है।
८६. जो भिक्षु नित्यपिण्डभोजी से अशन-पान-खाद्य-स्वाद्य रूप चतुर्विध आहार लेता है या लेने वाले का अनुमोदन करता है। ___८७. जो भिक्षु संसक्त को अशन-पान-खाद्य-स्वाद्य रूप चतुर्विध आहार देता है अथवा देने वाले का अनुमोदन करता है।
८८. जो भिक्षु संसक्त से अशन-पान-खाद्य-स्वाद्य रूप चतुर्विध आहार लेता है या लेने वाले का अनुमोदन करता है। ___इस प्रकार उपर्युक्त रूप में आचरण करने वाले भिक्षु को लघु चातुर्मासिक प्रायश्चित्त आता है।
विवेचन - भिक्षु एषणापूर्वक गृहस्थों से शुद्ध, निर्दोष आहार लेता है, जिसका लक्ष्य अपने संयममय जीवन के. परिपालन में अनन्य हेतु देह का पोषण, रक्षण है। वह भिक्षा में गृहीत आहार का स्वयं उपयोग कर सकता है एवं अपने सांभोगिक साधुओं को आवश्यकतानुरूप दे सकता है, क्योंकि वैसा करना उनके संयमोपवर्धन में सहयोगी होना है। शुद्ध चर्याशील, व्रताराधकं साधुओं के अतिरिक्त अन्य तथाकथित भिक्षु, साधु, तापस आदि किसी को भी
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