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पंचदश उद्देशक - सचित्त आम्र सेवन विषयक प्रायश्चित्त
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अंबपेसियं - आम की फाँक को, अंबभित्तं - आम का गूदा, अंबसालगं - आम का छिलका, अंबडालगं (अंबडगलं) - आम के टुकड़ों को, अंबचोयगं - आम के रस को।
भावार्थ - ५. जो भिक्षु सचित्त आम का सेवन करता है या सेवन करने वाले का अनुमोदन करता है।
६. जो भिक्षु सचित्त आम को चूसता है अथवा चूसने वाले का अनुमोदन करता है।
७. जो भिक्षु सचित्त प्रतिष्ठित आम का सेवन करता है या सेवन करने वाले का अनुमोदन करता है।
८. जो भिक्षु सचित्त प्रतिष्ठित आम को चूसता है अथवा चूसते हुए का अनुमोदन करता है।
९. जो भिक्षु सचित्त आम को, आम की फाँक को, आम का गूदा, आम का छिलका, आम के टुकड़े या आम के रस का सेवन करता है या सेवन करने वाले का अनुमोदन करता है। .. १०. जो भिक्षु सचित्त आम, आम की फाँक, आम का गूदा, आम का छिलका, आम के टुकड़े या आम के रस को चूसता है अथवा चूसने वाले का अनुमोदन करता है।
११. जो भिक्षु सचित्त प्रतिष्ठित आम, आम की फाँक, आम का गूदा, आम का छिलका, आम के टुकड़े या आम के रस का सेवन करता है अथवा सेवन करते हुए का अनुमोदन करता है।
१२.. जो भिक्षु सचित्त प्रतिष्ठित आम, आम की फाँक, आम का गूदा, आम का छिलका, आम के टुकड़े या आम के रस को चूसता है अथवा चूसते हुए का अनुमोदन करता है।
इस प्रकार उपर्युक्त रूप में आचरण करने वाले भिक्षु को लघु चातुर्मासिक प्रायश्चित्त आता है।
विवेचन - भिक्षु के लिए किसी भी सचित्त पदार्थ का सेवन वर्जित है। यहाँ सचित्त आम्रफल का विविध रूपों में सेवन प्रायश्चित्त योग्य बतलाया गया है।
प्रथम सूत्रचतुष्टय में अखण्ड आम के खाने या चूसने का प्रायश्चित्त कहा है तथा द्वितीय सूत्रचतुष्टय में उसके विभागों (खंडों) के खाने या चूसने का प्रायश्चित्त कहा है। इस सूत्रचतुष्टय में पुन: ‘अंबं वा' पाठ आया है जो चूर्णिकार के सामने भी था, किन्तु आचारांग
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