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________________ ३३० निशीथ सूत्र ... श्रु. २ अ. उ० २ में पुन 'अंबं' शब्द का प्रयोग नहीं है। अन्य शब्दों के क्रम में भी दोनों आगमों में अन्तर है। . निशीथ सूत्र में - १ अंबं, २ अंबंपेसिं, 3 अंबभितं, ४ अंबसालगं, ५ अंबडगलं, ६ अंबचोयगं ___ आचारांग सूत्र में - १ अंबभित्तं, २ अंबपेसि, 3 अंबचोयगं, ४ अंबसालगं, ५ अंबडगलं दोनों आगमों में कुछ शब्दों की व्याख्या भी भिन्न-भिन्न है - : आचारांग में अंबसालगं - आम्र का रस। अंबचोयगं - आम्र की छाल। निशीथ में - अंबसालगं - आम्र की छाल। अंबचोयगं - आम्र की केसरा। .. इत्यादि विकल्पों को देखने से यही लगता है कि आचारांग का पाठ शुद्ध है और उनके अर्थ भी संगत प्रतीत होते हैं। निशीथ में संभव है कि लिपि-प्रमाद से 'अंब' शब्द दूसरी बार आ गया हो। ____ आम को फलों का राजा कहा गया है। सरसता, मधुरता आदि आस्वाद्य गुणों में इसे सर्वोपरि माना गया है। "सर्वेपदा हस्तिपदे निमग्नाः " - के अनुसार आम का उल्लेख करने से अन्य सभी सचित्त फलों की वर्जनीयता सिद्ध हो जाती है। आम की फाँके, गोलक, रस आदि को भिन्न-भिन्न रूप में कहने का अभिप्राय यह है कि उसकी सर्वथा, सर्वाङ्गीण परित्याज्यता का स्पष्ट भान रहे। एक ही रूप को कहने से अन्य रूपों के संबंध में संशयापन्नता आशंकित है। ____ भिक्षु जिह्वालोलुपता के वशगत कदापि न हो। आस्वाद्य वस्तु का सेवन भी करना पड़े तो उसमें अनासक्त रहे। यहाँ आम्र को अखाद्य नहीं बतलाया गया है, वरन् गुठली युक्त, सचित्त आम को अग्राह्य (प्रायश्चित्त योग्य) बतलाया गया है। अन्यतीर्थिक या गृहस्थ से पादआमर्जनादि कराने का प्रायश्चित्त जे भिक्खू अण्णउत्थिएण वा गारथिएण वा अप्पणो पाए आमज्जावेज्ज वा पमज्जावेज वा, आमज्जावेंतं वा पमज्जावेंतं वा साइज्जइ एवं तइय उद्देसग गमेणं णेयव्वं जाव जे भिक्खू गामाणुगामं दुइज्जमाणे अण्णउत्थिएण वा गारथिएण वा अप्पणो सीसदुवारियं कारेइ कारंतं वा साइज्जइ॥१३-६८॥ ___भावार्थ - जो भिक्षु अन्यतीर्थिक या गृहस्थ से अपने पाँवों का एक बार या अनेक बार आमर्जन करवाता है या करवाने वाले का अनुमोदन करता है। इस प्रकार तीसरे उद्देशक के Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004200
Book TitleNishith Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2007
Total Pages466
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_nishith
File Size9 MB
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