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चतुर्दश उद्देशक - त्रस काय आदि निष्कासन पूर्वक पात्र ग्रहण प्रायश्चित्त
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निकटवर्ती अचित्त भूमि के विविध स्थानों पर जीव विराधना आदि दोष आशंकित हैं, उसी प्रकार इन सूत्रों में वैसे ही स्थानों पर अपना पात्र आतापित-प्रतापित करना (सुखाना) प्रायश्चित्त योग्य बतलाया गया है।
इन स्थानों पर या इनके निकटवर्ती स्थानों पर पात्र सुखाने से जीव विराधना तो होती ही है, इसके साथ-साथ पात्र के टूटने-फूटने या नष्ट होने की भी आशंका रहती है। अत: यदि पात्र को धोने के पश्चात् (अचित्त जल से) सुखना आवश्यक भी हो तो यतनापूर्वक, उचित स्थानों में ही सुखाना चाहिए।
स काय आदि निष्कासनपूर्वक पात्र ग्रहण प्रायश्चित्त जे भिक्खू पडिग्गहाओ पुढवीकायं णीहरइ णीहरावेइ णीहरियं आहट्ट देजमाणं पडिग्गाहेइ पडिग्गाहेंतं वा साइजइ॥४३॥
जे भिक्खू पडिग्गहाओ आउक्कायं णीहरइ णीहरावेइ णीहरियं आह? देजमाणं पडिग्गाहेइ पडिग्गाहेंतं वा साइज्जइ॥४४॥
जे भिक्खू पडिग्गहाओ तेउक्कायं णीहरइ णीहरावेइ णीहरियं आहट्टु देजमाणं पडिग्गाहेइ पडिग्गाहेंतं वा साइजइ॥४५॥ .. - जे भिक्खू पडिग्गहाओ कंदाणि वा मूलाणि वा पत्ताणि वा पुष्पाणि वा फलाणि वा बीयाणि वा हरियाणि वा णीहरइ णीहरावेइ णीहरियं आहट्ट देजमाणं पडिग्गाहेइ पडिग्गाहेंतं वा साइज्जइ॥ ४६॥ . जे भिक्खू पडिग्गहाओ ओसहिबीयाणि णीहरइ णीहरावेइ णीहरियं आहट्ट देजमाणं पडिग्गाहेइ पडिग्गाहेंतं वा साइज्जइ॥४७॥
जे भिक्खू पडिग्गहाओ तसपाणजाई णीहरइ णीहरावेइ णीहरियं आहट्ट देजमाणं पडिग्गाहेइ पडिग्गाहेंतं वा साइज्जइ ॥४८॥ ___ कठिन शब्दार्थ - णीहरइ - निकालता है, णीहरावेइ - (गृहस्थ आदि से) निकलवाता है, देजमाणं - दिए जाते हुए, आउक्कायं - अप्काय, तेउक्कायं - तेजस्काय, ओसहिबीयाणि - औषध बीज - शालि आदि अन्न के बीज, तसपाणजाई - त्रस जीव समूह।
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