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निशीथ सूत्र
..३६. जो भिक्षु सचित्त (सूक्ष्म त्रसजीव युक्त) पृथ्वी पर पात्र को आतापित-प्रतापित करे अथवा आतापित-प्रतापित करने वाले का अनुमोदन करे।
___३७. जो भिक्षु सचित्त (सूक्ष्म त्रसजीव युक्त) शिला के निकटवर्ती, भलीभाँति नहीं बंधे हुए, सम्यक् स्थापित नहीं किए गए, कंपन युक्त, अस्थिर स्थान पर पात्र को आतापितप्रतापित करे अथवा आतापित-प्रतापित करते हुए का अनुमोदन करे।
- ३८. जो भिक्षु सचित्त (सूक्ष्म त्रसजीव युक्त) मिट्टी के ढेले के निकटवर्ती, भलीभाँति नहीं बंधे हुए, सम्यक् स्थापित नहीं किए गए, कंपनयुक्त, अस्थिर स्थान पर पात्र को आतापित-. प्रतापित करे या आतापित-प्रतापित करने वाले का अनुमोदन करे। . ३९. जो भिक्षु घुणों के आवास, जीव, अण्डे, द्वीन्द्रिय जीव, बीज, अंकुरित बीज; ओस या जल युक्त काष्ठ अथवा कीटविशेष, पनक, उदकमय मिट्टी, कीचड़ युक्त मृत्तिका या मकड़ियों के जाले पर पात्र को आतापित-प्रतापित करे अथवा आतापित-प्रतापित करते हुए का अनुमोदन करे।
४०. जो भिक्षु स्तम्भ, देहली (देहरी), ऊखल, स्नान करने की चौकी (पीठिका) के सन्निकटवर्ती स्थान पर अथवा अन्य भी ऐसे अंतरिक्षजात (आकाशीय) स्थान पर, जो कि भलीभाँति नहीं बंधे हुए, सम्यक् स्थापित नहीं किए गए, कंपनयुक्त, स्थविर स्थान पर पात्र को आतापित-प्रतापित करता है या आतापित-प्रतापित करने वाले का अनुमोदन करता है।
४१. जो भिक्षु तिनकों से निर्मित दीवार, पाषाण मृत्तिका आदि से बनी भित्ति, धान्य आदि पीसने की शिला, मिट्टी के बड़े ढेले अथवा अन्य भी ऐसे अन्तरिक्षवर्ती (खुले) मञ्च आदि स्थान के निकटवर्ती, भलीभाँति नहीं बंधे हुए, सम्यक् स्थापित नहीं किए गए, कंपन युक्त, अस्थिर स्थान पर पात्र को आतापित-प्रतापित करे या आतापित-प्रतापित करते हुए का अनुमोदन करे।
४२. जो भिक्षु स्कन्ध, फलक, मंच, मंडप, माले (मकान का ऊपरी भाग - मंजिल), प्रासाद, जीर्ण-शीर्ण धनिक आवास या अन्य कोई अन्तरिक्षवर्ती (खुले), भलीभाँति नहीं बंधे हुए, सम्यक् स्थापित नहीं किए गए, कंपनयुक्त, अस्थिर स्थान पर पात्र को आतापित-प्रतापित करे अथवा आतापित-प्रतापित करने वाले का अनुमोदन करे।
इस प्रकार उपर्युक्त रूप में आचरण करने वाले भिक्षु को लघु चातुर्मासिक प्रायश्चित्त आता है।
विवेचन - तेरहवें उद्देशक के प्रथम एवं द्वितीय सूत्र में जिस प्रकार सचित्त के
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