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त्रयोदश उद्देशक - पार्श्वस्थ आदि की वंदना-प्रशंसा करने का प्रायश्चित्त
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करने वाले दोषों में संलग्न, णितियं - नित्यपिण्डभोजी - नित्यप्रति एक ही घर से आहार ग्रहण करने वाला, काहियं - काथिक - अशनादि प्राप्त करने हेतु कथा करने वाला, पासणियं - प्रश्नज्योतिषकर्ता - प्रश्नज्योतिष के अनुसार शुभाशुभ फल बतलाने वाला, मामगं - अपनी उपधि में ममत्वयुक्त, संपसारियं - गृहस्थों के कार्यों का परामर्श आदि द्वारा संप्रसार करना।
भावार्थ - ४६. जो भिक्षु पार्श्वस्थ को वंदन करता है या वंदन करने वाले का अनुमोदन करता है।
४७. जो भिक्षु पार्श्वस्थ की प्रशंसा करता है अथवा प्रशंसा करते हुए का अनुमोदन करता है।
४८. जो भिक्षु दुराचरणसेवी को वंदन करता है या वंदन करने वाले का अनुमोदन करता है।
४९. जो भिक्षु दुराचरणसेवी की प्रशंसा करता है अथवा प्रशंसा करते हुए का अनुमोदन करता है।...
. ५०. जो भिक्षु अवसादयुक्त को वंदन करता है या वंदन करने वाले का अनुमोदन करता है।
५१. जो भिक्षु अवसादयुक्त की प्रशंसा करता है अथवा प्रशंसा करते हुए का अनुमोदन करता है।
५२. जो भिक्षु संसक्त को वंदन करता है या वंदन करने वाले का अनुमोदन करता है। ५३. जो भिक्षु संसक्त की प्रशंसा करता है अथवा प्रशंसा करते हुए का अनुमोदन
करता है।
५४. जो भिक्षु नैत्यिक को वंदना करता है या वंदना करने वाले का अनुमोदन करता है।
५५. जो भिक्षु नैत्यिक की प्रशंसा करता है अथवा प्रशंसा करते हुए का अनुमोदन करता है।
५६. जो भिक्षु कथावाचक को वंदना करता है या वंदना करने वाले का अनुमोदन करता है।
५७. जो भिक्षु कथावाचक की प्रशंसा करता है अथवा प्रशंसा करते हुए का अनुमोदन करता है।
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