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निशीथ सूत्र
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इन्हीं सब कारणों को दृष्टिगत रखते हुए इस संदर्भ में यहाँ प्रायश्चित्त की ओर संकेत किया गया है।
पार्श्वस्थ आदि की वंदना-प्रशंसा करने का प्रायश्चित्त जे भिक्खू पासत्थं वंदइ वंदंतं वा साइजइ॥ ४६॥ . जे भिक्खू पासत्थं पसंसइ पसंसंतं वा साइजइ॥ ४७॥ जे भिक्खू कुसीलं वंदइ वंदंतं वा साइज्जइ ॥४८॥ जे भिक्खू कुसीलं पसंसइ पसंसंत वा साइजइ॥ ४९॥ जे भिक्खू ओसण्णं वंदइ वंदंतं वा साइज्जइ॥५०॥ जे भिक्खु ओसण्णं पसंसइ पसंसंत वा साइज्जइ॥५१॥ जे भिक्खू संसत्तं वंदइ वंदंतं वा साइजइ ॥५२॥ जे भिक्ख संसत्तं पसंसइ पसंसंतं वा साइज्जइ॥५३॥ जे भिक्खू णितियं वंदइ वंदंतं वा साइजइ॥५४॥ जे भिक्खू णितियं पसंसइ पसंसंतं वा साइजइ॥ ५५॥" जे भिक्खू काहियं वंदइ वंदंतं वा साइजइ॥५६॥ जे भिक्खू काहियं पसंसइ पसंसंतं वा साइजइ॥ ५७॥ जे भिक्खू पासणियं वंदइ वंदंतं वा साइजइ॥५८॥ जे भिक्खू पासणियं पसंसइ पसंसंतं वा साइजइ ॥ ५९॥ जे भिक्खू मामगं वंदइ वंदंतं वा साइजइ॥६०॥ जे भिक्खू मामगं पसंसइ पसंसंतं वा साइजइ॥ ६१॥ जे भिक्खू संपसारियं वंदइ वंदंतं वा साइजइ॥ ६२॥ जे भिक्ख संपसारियं पसंसइ पसंसंतं वा साइजइ॥ ६३॥
कठिन शब्दार्थ - पासत्थं - पार्श्वस्थ - बाह्य परिवेश के बावजूद ज्ञान-दर्शन-चारित्र रूप धर्म में अनाचरणशील, कुसीलं - दुराचरणसेवी, पसंसइ - प्रशंसा करता है, ओसण्णंअवसन्न - साधु समाचारी के पालन में अवसाद युक्त, संसत्तं - संसक्त - चारित्र विराधना
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