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निशीथ सूत्र
- ५८. जो भिक्षु प्रश्नज्योतिषकर्ता को वंदना करता है या वंदना करने वाले का अनुमोदन करता है।
५९. जो भिक्षु प्रश्नज्योतिषकर्ता की प्रशंसा करता है अथवा प्रशंसा करते हुए का अनुमोदन करता है।
६०. जो भिक्षु उपधि आदि में आसक्त को वंदन करता है या वंदन करने वाले का अनुमोदन करता है।
६१. जो भिक्षु उपधि आदि में आसक्त की प्रशंसा करता है अथवा प्रशंसा करते हुए का अनुमोदन करता है।
६२. जो भिक्षु संप्रसारक को वंदना करता है या वंदना करने वाले का अनुमोदन करता है। .
६३. जो भिक्षु संप्रसारक की प्रशंसा करता है अथवा प्रशंसा करते हुए का अनुमोदन करता है। ___ इस प्रकार उपर्युक्त रूप में आचरण करने वाले भिक्षु को लघु चातुर्मासिक प्रायश्चित्त आता है।
विवेचन - पार्श्वस्थ आदि शब्दों का अर्थ इस प्रकार समझना चाहिए -
१. पार्श्वस्थ - दर्शन, ज्ञान, चरित्र, तप और प्रवचन में जिन्होंने अपनी आत्मा को स्थापित किया है ऐसे उद्यत विहारियों का जो पार्श्वविहार है अर्थात् उनके समान आचारपालन नहीं करता है उसे पार्श्वस्थ जानना चाहिए।
२. अवसन्न - संयम समाचारी से विपरीत आचरण करने वाला अवसन कहा जाता है। जो अवसन्न होता है वह आवस्सही (आवश्यकी) आदि दस प्रकार की समाचारियों को कभी करता है, कभी नहीं करता है, कभी विपरीत करता है। इस प्रकार स्वाध्याय आदि भी नहीं करता है या दूषित आचरण करता है तथा शुद्ध पालन के लिए गुरुजनों द्वारा प्रेरणा किये जाने पर उनके वचनों की अपेक्षा या अवहेलना करता है। वह अवसन्न कहा जाता है।
3. कुशील - जो निन्दनीय कार्यों में अर्थात् संयम जीवन में नहीं करने योग्य कार्यों में लगा रहता है वह कुशील कहा जाता है। . ___४. संसक्त - जो जैसे साधुओं के साथ रहता है वह वैसा ही हो जाता है। अतः वह संसक्त कहा जाता है। जो पासत्थ अहाछंद कुशील और ओसण्ण के साथ मिलकर वैसा
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