________________
निशीथ सूत्र
मनोविनोद के साधन, युद्ध आदि के प्रदर्शन, महोत्सव आयोजन इत्यादि का वर्णन समाज की मेधाविता का परिचय कराता है।
२७६
यह सब होते हुए भी प्रबुद्ध लोगों की मानसिकता इनमें यावज्जीवन आसक्त न रह कर, अन्ततः संयम और साधना का पथ अपनाने की रही है। उपासकदशाङ्ग सूत्र में वर्णित दसों ही श्रावकों का जीवन समृद्धि, श्री एवं सुख-संपन्नता की दृष्टि से बहुत उन्नत था, किन्तु अंततः सभी ने अपना जीवन व्रतमय आराधना में लगाया और पंडितमरण को प्राप्त हुए ।
भिक्षु का जीवन वर्षाकाल के चार माह के अतिरिक्त पर्यटनशील जीवन है। वह बहुविध स्थानों पर जाता है। अनेक दृश्य देखता है। वह कहीं भी रागान्वित न हो जाए, इस दृष्टि से जितने भी संभावित दृश्य हैं, उन्हें वह रागाभिभूत हो कर न देखे। इन सूत्रों का यही हार्द है।
आहार विषयक कालमर्यादा के उल्लंघन का प्रायश्चित्त
जे भिक्खू पढमाए पोरिसीए असणं वा पाणं वा खाइमं वा साइमं वा पडिग्गाहेत्ता पच्छिमं पोरिसिं उवाइणावेइ उवाइणावेंतं वा साइज्जइ ॥ ३१ ॥
कठिन शब्दार्थ - पढमाए प्रथम, पोरिसीए - पोरसी में, पच्छिमं पोरिसिं अन्तिम पोरसी (पौरुषी) में, उवाइणावेइ अतिक्रांत करता है।
भावार्थ ३१. जो भिक्षु पहली पोरसी में अशन, पान, खाद्य, स्वाद्य रूप आहार प्रतिगृहीत कर अन्तिम पोरसी तक रखता है, यों भिक्षाचर्या हेतु कालमर्यादा का उल्लंघन करता है या उल्लंघन करने वाले का अनुमोदन करता है, उसे लघु चौमासी प्रायश्चित्त आता है।
-
-
विवेचन - भिक्षु का रात्रि दिवस का कार्यक्रम नियमानुबद्ध, व्यवस्थानुगत एवं अनुशासनयुक्त होता है । वैसा करता हुआ वह अपनी संयम यात्रा में सफलतापूर्वक अग्रसर होता रहता है। दैहिक जीवन की दैनंदिन आवश्यकताओं में आहार का सर्वाधिक महत्त्व है। अतः जैनागमों में भिक्षुओं के लिए आहार विषयक मर्यादाओं एवं नियमों का विस्तार से उल्लेख हुआ है। कोई भिक्षु चाहे जब भिक्षा ले आए और जब चाहे ग्रहण कर ले ऐसा नहीं होता।
Jain Education International
उत्तराध्ययन सूत्र के २६ वें अध्ययन की १२ वीं गाथा में यह बतलाया गया है कि भिक्षु दिन के तृतीय प्रहर में भिक्षा लाए। यह भिक्षा लाने का सामान्य नियम है।
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org