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द्वादश उद्देशक - भौतिक आकर्षण-आसक्ति-विषयक प्रायश्चित्त
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‘साधु की भिक्षाचर्या आदि में कहीं भी, किसी भी रूप में दोष न लगे, उसकी सभी प्रवृत्तियाँ निर्दोष एवं निरवद्य हों, इस दृष्टि से एक ही विषय के अलग-अलग पहलुओं को पृथक्-पृथक् सूत्रों में वर्णित किया गया है। क्योंकि संयम एक अमूल्य रत्न है, जिसका परिरक्षण अत्यंत सावधानी और जागरूकता के साथ किया जाना चाहिए। - भौतिक आकर्षण-आसक्ति-विषयक प्रायश्चित्त
जे भिक्खू वप्पाणि वा फलिहाणि वा उप्पलाणि वा पल्ललाणि वा उज्झराणि वा णिज्झराणि वा वावीणि वा पोक्खराणि वा दीहियाणि वा गुंजालियाणि वा सराणि वा सरपंतियाणि वा सरसरपंतियाणि वा चक्खुदंसणपडियाए अभिसंधारेइ अभिसंधारेंतं वा साइज्जड़॥ १६॥ .. कठिन शब्दार्थ - वप्पाणि - वप्र - खेत, फलिहाणि - परिखा - खाई, उप्पलाणि - नीलकमलयुक्त जलाशय, पल्ललाणि - छोटे तालाब, उज्झराणि - जल प्रपात, णिज्झराणि - निर्झर, वावीणि - वापी - बावड़ी, पोक्खराणि - कमलयुक्त . छोटे तालाब, दीहियाणि - दीर्घिका - चौकोर बावड़ी, गुंजालियाणि - गुजालिका - वापी विशेष, सराणि - सरोवर, सरपंतियाणि - सरोवरों की पंक्ति, सरसरपंतियाणि - प्रणालिका संबद्ध सरोवरों की पंक्तियाँ, चक्खुदंसणपडियाए - नेत्रों द्वारा देखने की इच्छा से, अभिसंधारेइ - मन में निश्चय करता है। - भावार्थ - १६. जो भिक्षु खेत, खाई, नीलकमलयुक्त जलाशयं, छोटे तालाब, जलप्रपात, निर्झर, बावड़ी, कमलयुक्त छोटे तालाब, चतुष्कोण युक्त बावड़ी, वापी विशेष, सरोवर, सरोवरों
की पंक्ति, प्रणालिका संबद्ध सरोवरों की पंक्तियों को नेत्रों से देखने की इच्छा से मन में निश्चय करता है अथवा निश्चय करने वाले का अनुमोदन करता है, उसे लघुचातुर्मासिक प्रायश्चित्त आता है।
जे. भिक्खू कच्छाणि वा गहणाणि वा णूमाणि वा वणाणि वा वणविदुग्गाणि वा पव्वयाणि वा पव्वयविदुग्गाणि वा चक्खुदंसणपडियाए अभिसंधारेइ अभिसंधारेंतं वा साइज्जइ॥ १७॥
. कठिन शब्दार्थ - कच्छाणि - जल बहुल प्रदेश, गहणाणि -- सघन वृक्ष युक्त वन, णूमाणि - नूमानि (देशी शब्द) वृक्षाधिक्य के कारण छाया हुआ गुप्त वनं प्रदेश,
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