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निशीथ सूत्र
........................... वणाणि - एक जातीय वृक्ष युक्त वन, वणविदुग्गाणि - विविध वृक्ष समुदाय युक्त वन, पव्वयाणि - पर्वत, पव्वयविदुग्गाणि - पर्वतों के समूह युक्त स्थान को।
भावार्थ - १७. जो भिक्षु जल बहुल प्रदेश, सघन वृक्ष युक्त वन, गुप्तवन प्रदेश, वन, विविध वृक्षमय वन, पर्वत या पर्वत समूह - इनको नेत्रों से देखने की इच्छा से मन में भावना करता है अथवा वैसा करते हुए का अनुमोदन करता है, उसे लघु चातुर्मासिक प्रायश्चित्त आता है।
जे भिक्खू गामाणि वा णगराणि वा खेडाणि वा कब्बडाणि वा मडंबाणि वा दोणमुहाणि वा पट्टणाणि वा आगराणि वा संवाहाणि वा सण्णिवेसाणि वा चक्खु-दसणपडियाए अभिसंधारेइ अभिसंधारेंतं वा साइजइ॥ १८॥
कठिन शब्दार्थ - खेडाणि - धूल के परकोटे से घिरा स्थान, कब्बडाणि - कर्बट - कुत्सित नगर, दोणमुहाणि - जल एवं स्थल युक्त नागरिक निवास, पट्टणाणि - पत्तन - समस्त भौतिक वस्तुओं के प्राप्ति स्थल, आगराणि - आकर - स्वर्ण आदि धातुओं की खान, संवाहाणि - संवाह - धान्य रक्षा के लिए बनाए गए दुर्गम स्थान, सण्णिवेसाणि - सन्निवेश - सार्थवाह आदि के आगमन युक्त स्थान।
भावार्थ - १८. जो भिक्षु ग्राम, नगर, खेट, कर्बट, मडंब, द्रोणमुख,, पत्तन, खान (स्वर्ण आदि की), संवाह, सन्निवेश इत्यादि को नेत्रों से देखने की इच्छा से मन में निश्चय करता है या वैसा करते हुए का अनुमोदन करता है, उसे लघु चातुर्मासिक प्रायश्चित्त आता है। ___ जे भिक्खू गाममहाणि वा णगरमहाणि वा खेडमहाणि वा कब्बडमहाणि वा मडंबमहाणि वा दोणमुहमहाणि वा पट्टणमहाणि वा आगरमहाणि वा संवाहमहाणि वा सण्णिवेसमहाणि वा चक्खुदंसणपडियाए अभिसंधारेइ अभिसंधारेंतं वा साइज्जइ॥१९॥
कठिन शब्दार्थ - गाममहाणि - ग्राममहान् - गाँव का उत्सव - मेला।
भावार्थ - १९. जो भिक्षु ग्राम, नगर, खेट, कर्बट, मडंब, द्रोणमुख, पत्तन, खान, संवाह, सन्निवेश इत्यादि में आयोजित होने वाले उत्सव या मेले आदि को आँखों से देखने की इच्छा से मन में भावना करता है अथवा ऐसा करने वाले का अनुमोदन करता है, उसे लघु चौमासी प्रायश्चित्त आता है।
जे भिक्खू गामवहाणि वा णगरवहाणि वा खेडवहाणि वा कब्बडवहाणि
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