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बारसमो उद्देसओ - द्वादश उद्देशक.
त्रस- प्राणी - बंधन- विमोचन विषयक प्रायश्चित्त
जे भिक्खू कोलुणपडियाए अण्णयरिं तसपाणजाई तणपासएण वा मुंजपासएण वा कट्टपासएण वा चम्मपासएण वा वेत्तपासएण वा सुत्तपासएण वा रज्जुपासएण वा बंधइ बंधतं वा साइज्जइ ॥ १ ॥
जे भिक्खू कोलुणपडियाए अण्णयरिं तसपाणजाई तणपासएण वा मुंजपासएण वा कट्ठपासएण वा चम्मपासएण वा वेत्तपासएण वा सुत्तपासण वा रज्जुपासएण वा बद्धेल्लयं मुंच (मुय )इ मुंचं (यं) तं वा साइज्जइ ॥ २ ॥ कठिन शब्दार्थ- कोलुणपडियाए - करुणाभाव (दीनताभाव मोहभाव) से, तणपासएण - तृणपाश से, मुंज- मूँज, कट्ठ - काष्ठ, चम्म - चर्म - चमड़ा, वेत्त वेत्र - बेंत, सुत्त - सूत्र - सूत, रज्जु रस्सी बंधड़ - बांधता है, बंधतं - बांधते हुए का, बल्लयं - बंधे हुए को ।
भावार्थ - १. जो भिक्षु करुणाभाव से किसी त्रस प्राणी को तृण, मूँज, काष्ठ, चमड़े, बेंत, सूत्र या रज्जू के पाश या फंदे से बांधता है या बांधते हुए का अनुमोदन करता है ।
२. जो भिक्षु करुणावश तृण, मूँज, काष्ठ, चर्म, बेंत, सूत्र या रज्जू के पाश से बंधे हुए स प्राणी को बंधन मुक्त करता है या ऐसा करते हुए का अनुमोदन करता है।
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ऐसा करने वाले भिक्षु को लघु चातुर्मासिक प्रायश्चित्त आता है।
विवेचन - भिक्षु का जीवन मोक्षलक्षी होता है। उसके समस्त कार्य, प्रवृत्तियाँ उसी प्रकार की होती हैं, जिनसे वह मोक्षमार्ग पर उत्तरोत्तर अग्रसर होता जाए । अत एव भिक्षुचर्या की विशेष मर्यादाएँ और सिद्धान्त हैं। वह ऐहिक नहीं वरन् पारलौकिक जीवन जीता है। ऐहिकता का उसके जीवन के साथ उतना ही संबंध है कि संयम के उपकरणभूत शरीर का निर्वाह हो सके। जब शरीर की संयमोपवधर्कता, साधकता नहीं रहती तब उसे भी वह अन्ततः समाधिपूर्वक विसर्जन कर देता है, जिसे शास्त्रों में पण्डित मरण कहा गया है।
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यहाँ पर त्रस जीवों में गाय आदि के बछड़े आदि बड़े जीव समझना चाहिये तथा शय्यातर कहता हो कि - 'यहाँ पर आप उतरें किन्तु इन बछड़ों आदि को जंगल से आने पर बांध देना अथवा समय होने पर खोल देना' तो ये सब कार्य गृहस्थों के होने से साधुओं को इस प्रकार
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