________________
२४२
निशीथ सूत्र
आशय यह है कि वहाँ ऐसी विपरीत परिस्थितियाँ उत्पन्न हो सकती हैं, जहाँ भिक्षु के लिए अपनी विशुद्ध, संयमानुप्राणित चर्या का अनुसरण, अनुपालन करने में बाधाएँ हों।..
दिवाभोजन निंदा एवं रात्रिभोजन प्रशंसा विषयक प्रायश्चित्त जे भिक्खू दियाभोयणस्स अवण्णं वयइ वयंतं वा साइज्जइ॥ ७५॥ जे भिक्खू राइभोयणस्स वण्णं वयइ वयंतं वा साइजइ॥ ७६॥
कठिन शब्दार्थ - दियाभोयणस्स - दिन के भोजन की, राइभोयणस्स - रात के भोजन की।
भावार्थ - ७५. जो भिक्षु दिवा भोजन की निंदा करता है या निंदा करते हुए का अनुमोदन करता है।
७६. जो भिक्षु रात्रिभोजन की प्रशंसा करता है या प्रशंसा करते हुए का अनुमोदन करता है। ऐसा करने वाले भिक्षु को गुरु चातुर्मासिक प्रायश्चित्त आता है।
विवेचन - भिक्षु को रात्रिभोजन का तीन योग एवं तीन करण (मन-वचन-काय तथा कृत-कारित-अनुमोदित रूप) से प्रत्याख्यान होता है। वह केवल दिवाभोजी ही होता है। ऐसी स्थिति में दिवा भोजन की निंदा और रात्रि भोजन की प्रशंसा करना उसके आचार के सर्वथा प्रतिकूल है। ऐसा करने से रात्रिभोजन का अनुमोदन होता है, जिससे दोष लगता है। अत एव इन सूत्रों में उसे प्रायश्चित्त का भागी कहा गया है।
चर्या विपरीत भोजन विषयक प्रायश्चित्त जे भिक्खू दिया असणं वा पाणं वा खाइमं वा साइमं वा पडिग्गाहेत्ता .. भुंजइ भुंजंतं वा साइजइ॥ ७७॥
जे भिक्खू दिया असणं वा पाणं वा खाइमं वा साइमं वा पडिग्गाहेत्ता रत्तिं भंजइ भुजंतं वा साइजइ॥७८॥
जे भिक्खू रत्तिं असणं वा पाणं वा खाइमं वा साइमं वा पडिग्गाहेत्ता दिया भुंजइ भुंजंतं वा साइजइ॥७९॥
जे भिक्खू रत्तिं असणं वा पाणं वा खाइमं वा साइमं वा पडिग्गाहेत्ता रत्तिं भुंजइ भुजंतं वा साइजइ॥८०॥
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org