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दशम उद्देशक - सूर्योदय पूर्व - सूर्यास्तानन्तर वृत्तिलंघन - प्रायश्चित्त
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णाइक्कमइ, तं अप्पणा भुंजमाणे अण्णेसिं वा दलमाणे राइभोयण पडिसेवणपत्ते। जो तं भुंजइ भुंजंतं वा साइज्जइ॥ ३३॥
जे भिक्खू उग्गयवित्तीए अणथमियसंकप्पे असंथडिए वितिगिच्छासमावण्णेणं असणं वा पाणं वा खाइमं वा साइमं वा पडिग्गाहेत्ता संभुंजमाणे, अह पुण एवं जाणेजा "अणुग्गए सूरिए अत्थमिए वा" से जं च मुहे जं च पाणिंसि जं च पडिग्गहे तं विगिंचिय विसोहिय तं परिवेमाणे णाइक्कमइ (तं अप्पणा भुंजमाणे अण्णेसिं वा दलमाणे राइभोयणपडिसेवणपत्ते)। जो तं भुंजइ भुंजंतं वा साइजइ॥ ३४॥
कठिन शब्दार्थ - उग्गयवित्तीए - उद्गतवृत्तिक - सूर्योदय के पश्चात् आहारादि लाने, सेवन करने के वर्तन - व्यवहार से युक्त, अणथमियमणसंकप्पे - अनस्तमितमन:संकल्प - सूर्यास्त से पूर्व आहार - विहारादि के मानसिक संकल्प से युक्त, संथडिए - संस्तृत - धीरज, बल एवं सहनशीलता युक्त - समर्थ या सशक्त, णिव्वितिगिच्छासमावण्णेणं - निर्विचिकित्सासमापन्न - संदेह रहित, अप्पाणेणं - आत्मपरिणामपूर्वक, अणुग्गए सूरिए - सूर्य अनुदित होने पर - सूर्य नहीं उगा है, यह जानकर, अत्थमिए - सूर्य अस्त हो गया है, यह जानकर, से - अथ - तदनन्तर, जं - जो, आसयंसि - आस्य में - मुख में, मुहे - मुँह में, पाणिंसि - हाथ में, पडिग्गहे - ग्रहण किया हुआ - लिया हुआ हो, तं - उसको, विगिंचिय - विविक्त कर - निकालकर या हटाकर, विसोहिय - विशेष रूप से शुद्ध - स्वच्छ करके, परिवेमाणे - परठता हुआ, णाइक्कमइ - जिनाज्ञा का अतिक्रमण नहीं करता, अप्पणा - स्वयं - खुद, भुंजमाणे - भोजन करता हुआ - खाता हुआ, अण्णेसिंदूसरों को, दलमाणे - देता हुआ, राइभोयणपडिसेवणपत्ते - रात्रिभोजन प्रतिसेवन प्राप्त - सेवन करता हुआ, वितिगिच्छाए. - विचिकित्सा - संदेह, असंथडिए - असंस्तृत - धृति, बल आदि रहित - असमर्थ या अशक्त।
भावार्थ - ३१. सूर्योदय के पश्चात् एवं सूर्यास्त से पूर्व आहारादि दैनंदिन प्रवृत्तियाँ करने के संकल्प से युक्त और तदनुकूल व्यवहरणशील जो समर्थ-सशक्त भिक्षु संदेह रहित आत्मपरिणामों से युक्त होता हुआ, अशन-पान-खाद्य-स्वाध रूप आहार ग्रहण करता हुआ, सेवन करता हुआ - खाता हुआ यदि ऐसा जाने कि "सूर्य उदित नहीं हुआ है या सूर्य अस्तमित हो गया है - छिप गया है" तो वह मुँह में, हाथ में एवं पात्र में जो आहार हो,
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