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निशीथ सूत्र
यहाँ प्रयुक्त हेतु तथा संकल्प जैन पारिभाषिक शब्द हैं। हेतु का तात्पर्य - 'प्रायश्चित्त के अनन्तर आलोचना करने तक का है। संकल्प का अभिप्राय - 'प्रायश्चित्त में स्थापित करने का जो दिन निर्धारित किया गया हो, तब तक' का है।
प्रायश्चित्त शुद्धिकरण की शास्त्रानुमोदित प्रक्रिया है, जब वह कृत, आलोचित और संकल्पित - त्रिविध रूप में परिसंपन्न हो जाती है तब उस प्रायश्चित्त का पर्यवसान माना जाता है । वैसा होने तक उसके साथ किसी अन्य साधु को आहारादि विषयक संव्यवहार करना वर्जित है। यदि कोई वैसा करता है तो वह प्रायश्चित्त का भागी होता है । यही तथ्य इन सूत्रों में वर्णित हुआ है।
सूर्योदय पूर्व सूर्यास्तानन्तर वृत्तिलंघन - प्रायश्चित्त
जे भिक्खू उग्गयवित्तीए अणर मियमणसंकप्पे संथडिए णिव्वितिगिच्छासमावण्णेणं अप्पाणेणं असणं वा पाणं वा खाइमं वा साइमं वा पडिग्गाहेत्ता संभुंजमाणे, अहं पुण एवं जाणेज्जा " अणुग्गए सूरिए अत्थमिए वा " से जं च (आसयंसि ) मुहे जं च पाणिंसि जं च पडिग्गहे तं विगिंचिय विसोहिय तं परिट्ठवेमाणे ( धम्मं) णाइक्कमइ, तं अप्पणा भुंजमाणे अण्णेसिं वा दलमाणे राइभोयणपड़िसेवणपत्ते । जो तं भुंजइ भुंजंतं वा साइज्जइ ॥ ३१ ॥
जे भिक्खू उग्गयवित्तीए अणत्थमियसकंप्पे संथडिए वितिगिच्छाए समावण्णेणं अप्पाणेणं असणं वा पाणं वा खाइमं वा साइमं वा पडिग्गाहेत्ता संभुंजमाणे, अह पुण एवं जाणेज्जा " अणुग्गए सूरिए अत्थमिए वा" से जं च मुहे जं च पाणिंसि जं च पडिग्गहे तं विगिंचिय विसोहिय तं परिमाणे णाइक्कमइ, तं अप्पणा भुंजमाणे अण्णेसिं वा दलमाणे राइभोयणपडिसेवणपत्ते । जो तं भुंजइ भुंजंतं वा साइज्जइ ॥ ३२ ॥
जे भिक्खू उग्गयवित्तीए अणत्थमियसंकप्पे असंथडिए णिव्वितिगिच्छासमावण्णेणं अप्पाणेणं असणं वा पाणं वा खीइमं वा साइमं वा पडिग्गाहेत्ता संभुंजमाणे, अह पुण एवं जाणेज्जा " अणुग्गए सूरिए अत्थमिए वा " से जं च मुहे जं च पाणिंसि जं च पडिग्गहे तं विगिंचिय विसोहिय तं परिट्ठवेमाणे
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