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दशम उद्देशक
प्रायश्चित्त योग्य भिक्षु के साथ आहारादि संभोग विषयक दोष २१५
सुनकर तथा जानकर भी उसके साथ आहारादि का व्यवहार रखता है अथवा रखते हुए का अनुमोदन करता है।
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२३. जो भिक्षु किसी साधु के गुरु प्रायश्चित्त आने के संबंध में सुनकर तथा जानकर भी उसके साथ आहारादि का व्यवहार रखता है अथवा रखते हुए का अनुमोदन करता है ।
२४. जो भिक्षु किसी साधु के गुरु प्रायश्चित्त के हेतु - कारण को सुनकर तथा जानकर भी उसके साथ आहारादि का व्यवहार रखता है अथवा रखते हुए का अनुमोदन करता
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२५. जो भिक्षु किसी साधु संबद्ध गुरु प्रायश्चित्त विषयक संकल्प को सुनकर तथा जानकर भी उसके साथ आहारादि का व्यवहार रखता है अथवा रखते हुए का अनुमोदन करता है।
२६. जो भिक्षु किसी साधु के गुरु प्रायश्चित्त उसके हेतु या तत्संबद्ध संकल्प को सुनकर तथा जानकर भी उसके साथ आहारादि का व्यवहार रखता है अथवा रखते हुए का अनुमोदन करता है 1
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२७. जो भिक्षु किसी साधु के लघु या गुरु प्रायश्चित्त आने के संबंध में सुनकर तथा जानकर भी उसके साथ आहारादि का व्यवहार रखता है अथवा रखते हुए का अनुमोदन करता है।
२८. जो भिक्षु किसी साधु के लघु या गुरु प्रायश्चित्त के हेतु - कारण को सुनकर तथा जानकर भी उसके साथ आहारादि का व्यवहार रखता है अथवा रखते हुए का अनुमोदन करता है।
२९. जो भिक्षु किसी साधु से संबद्ध लघु या गुरु प्रायश्चित्त विषयक संकल्प को सुनकर • तथा जानकर भी उसके साथ आहारादि का व्यवहार रखता है अथवा रखते हुए का अनुमोदन करता है।
३०.
जो भिक्षु किसी साधु के लघु या गुरु प्रायश्चित्त उनके हेतु या तत्संबद्ध संकल्प को सुनकर तथा जानकर भी उसके साथ आहारादि का व्यवहार रखता है अथवा रखते हुए का अनुमोदन करता है।
इस प्रकार उपर्युक्त अविहित कार्य करने वाले भिक्षु को गुरु चातुर्मासिक प्रायश्चित्त
आता है।
विवेचन - इन सूत्रों में प्रायश्चित्त स्थान, तत्संबंधी हेतु एवं तद्विषयक संकल्प तीन स्थितियों का वर्णन हुआ है।
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