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________________ नवम उद्देशक - राज्याधिकारी कर्मचारी हेतु कृत आहार - ग्रहण...... २५. जो भिक्षु क्षत्रियकुलोत्पन्न, शुद्ध मातृ-पितृ वंशीय एवं मूर्धाभिषिक्त राजा के अश्वमार्जकों या हस्तिमार्जकों, उनके शरीर पर लगी रज आदि झाड़ने वालों के लिए तैयार कराए गए, रखे गए भोज्य पदार्थों में से अशन-पान - खाद्य-स्वाद्य रूप आहार ग्रहण करता है अथवा ग्रहण करते हुए का अनुमोदन करता है। २६. जो भिक्षु क्षत्रियकुलोत्पन्न, शुद्ध मातृ-पितृ वंशीय एवं मूर्धाभिषिक्त राजा के अश्वारोहियों या गजारोहियों के लिए तैयार कराए गए, रखे गए भोज्य पदार्थों में से अशन-पान-खाद्य-स्वाद्य रूप आहार ग्रहण करता है अथवा ग्रहण करते हुए का अनुमोदन करता है । २७. जो भिक्षु क्षत्रियकुलोत्पन्न, शुद्ध मातृ-पितृ वंशीय एवं मूर्धाभिषिक्त राजा के आह्वान विषयक संदेशवाहकों, देह संवाहकों, तेलमर्दकों, उबटनकारकों, स्नापकों स्नान कराने वालों, मुकुट आदि द्वारा मण्डनकारकों, छत्रधारियों, चँवरधारियों, अलंकार - पात्रधारियों, वस्त्रपेटिकाधारियों, दीवटधारियों, राजा के निमित्त खड्गधारियों, धनुर्धारियों, शक्तिधारकों, कुन्त (भाला) धारियों, हाथियों को लिए चलने वालों या अंकुशधारियों - महावतों के लिए तैयार कराए गए, रखे गए भोज्य पदार्थों में से अशन-पान-खाद्य-स्वाद्य रूप आहार ग्रहण करता है अथवा ग्रहण करते हुए का अनुमोदन करता है । २८.. जो भिक्षु क्षत्रियकुलोत्पन्न, शुद्ध मातृ-पितृ वंशीय एवं मूर्धाभिषिक्त राजा के अन्तःपुर वर्षधरों - कृत्रिम नपुंसकों, कंचुकियों नैसर्गिक नपुंसकों, द्वारपालों या दण्डधर रक्षकों के लिए तैयार कराए गए, रखे गए भोज्य पदार्थों में से अशन-पान-खाद्य-स्वाद्य रूप आहार ग्रहण करता है अथवा ग्रहण करते हुए का अनुमोदन करता है । २९. जो भिक्षु क्षत्रियकुलोत्पन्न, शुद्ध मातृ-पितृ वंशीय एवं मूर्धाभिषिक्त राजा की कुब्जा दासियों, किरात देशोत्पन्न दासियों, बौनी दासियों, वक्रार्ध देहयुक्त दासियों, बर्बर देशोत्पन्न, बकुश देशोत्पन्न, यवन (यूनान) देशोत्पन्न, पह्नव देशोत्पन्न, ईसीनिका देशोत्पन्न, थार देशोत्पन्न, लकुश देशोत्पन्न, लास ( ल्हास) देशोत्पन्न, द्रविड़ देशोत्पन्न, सिंहल देशोत्पन्न, अरब देशोत्पन्न, पुलिंद देशोत्पन्न, पक्कण देशोत्पन्न, बाह्लीक देशोत्पन्न, मुरण्ड देशोत्पन्न, शबर देशोत्पन्न तथा फारस देशोत्पन्न दासियों के लिए तैयार कराए गए, रखे गए भोज्य पदार्थों में से अशन-पानखाद्य-स्वाद्य रूप आहार ग्रहण करता है अथवा ग्रहण करते हुए का अनुमोदन करता है । इन सूत्रों में वर्णित अविहित कार्य करने वाले भिक्षु को गुरु चातुर्मासिक प्रायश्चित्त आता है। Jain Education International For Personal & Private Use Only २०१ www.jalnelibrary.org
SR No.004200
Book TitleNishith Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2007
Total Pages466
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_nishith
File Size9 MB
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